For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम स्त्री हो ...

सावधान रहो

सतर्क रहो

किस किस से

कब कब

कहाँ कहाँ

हमेशा रहो

हरदम रहो

जागते हुए भी

सोते हुए भी

क्या कहा ?

ख्वाब देखती हो

किसने कहा था

बंद करो

कल्पना की कूची से

आसमान में रंग भरना

उड़ना चाहती हो ?

क़तर डालो पंखो को

अभी के अभी

ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो

अरे तुम तो खिलखिलाती भी हो

बंद करो आँखों में

काजल भरना और

हिरणी सी कुलाचे भर

भवरों संग गुंजन करना

यही तो दोष तुम्हारा  है

शोक गीत गाओ

भूल गयी

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है

देश धर्म औ जात

बस सूंघती है

मादा गंध

 

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1033

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:27pm

आपकी लेखनी यूं ही दिन पर दिन सशक्‍त होती जाए, ईश्‍वर से यही कामना है

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 3:11pm

आदरणीय सौरभ सर.। आपकी उपस्थिति अपेक्षित थी। .:))

//आपकी इस रचना को आपका मील-पत्थर समझ रहा हूँ.//

सर आपने ऐसा कहा। मैं चकित भी हूँ और ख़ुशी भी मह्सुश कर रही हूँ। . मैं पोस्ट करने से पहले सशंकित थी पता नही.. कैसी प्रतिक्रिया मिले। पर आप की टिपण्णी ने राहत के साथ साथ अतुलनीय उत्साहवर्धन का काम किया और रचना कर्म को संतुष्टि मिली ।

जी आदरणीय भविष्य में ध्यान रखूंगी कि अतुकांत लिखते समय प्रवाह और सम्प्रेषण सही हो सिर्फ शाब्दिकता ना हो।
आदरणीय आपका ह्रदय तल से आभारी हूँ। .स्नेह बनाए रखे। .सादर

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:57pm

//ये सर्वभोमिक सत्य तो नही है पर असत्य भी नही ,
सब पर लागु नही पर किस पर लागु हो जाये कहा भी नही जा सकता.//
आदरणीय अमन जी। . सही कहा आपने। य़े सभी पे लागु नहीं होता। य़े मानसिक रूप से पीड़ित समाज रहने वाले उन लोगो के लिए है है जो गाहे बगाहे एसा करते या सोचते है। . सादर आपकी आभारी हूँ आपने अपने विचार रखे समय दिया। .सहयोग बनाये रखे

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:52pm

आदरणीय श्याम जुनेजा जी। . सादर नमस्कार
आदरणीय आपने रचना को समय दिया और उसे एक नए तरके से प्रेषित कर सम्प्रेषण को निखारा , मार्गदर्शन दिया उसके लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ आदरणीय आशा है भविष्य में भी आपका बहुमूल्य मार्गदर्शन मिलता रहेगा। . सादर धन्यवाद /

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:45pm

आदरणीय विजय सर आपने शब्दों से मुझे उत्साह मिला। . रचना कर्म को प्रोत्साहन। . आपकी ह्रदय से आभारी हूँ। . स्नेह बनाये रखे /सादर

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:43pm

//अलग तरह की कविता है, एक व्यथा है, एक संकेत, एक सच और एक दुःख..//
आदरणीय आशीष जी। .आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया ने मुझे संबल दिया की जो भाव रचना में थे वो प्रेषित हुए.लिखना सफल रहा आपका हार्दिक बधाई /सहयोग बनाए रखे

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:39pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , आदरणीया मीना पाठक जी , आदरणीय अमन जी , आदरणीय बसन्त नेमा जी। . . आप सब ने रचना को समय दिया , सराहा अपने विचार दिए इसके लिए आप सभी सुधिजनो का ह्रदय तल से आभारी हूँ। सादर , सहयोग और स्नेह बनाये रखे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 2:50pm

आपकी इस रचना को आपका मील-पत्थर समझ रहा हूँ. क्या कुछ नहीं देखा, क्या कुछ नहीं सुना .. . किन्तु, जो अब जान रहा हूँ उससे काठ सा मार जाता है.

इस संवेदनशील रचना केलिए बहुत-बहुत बधाइयाँ. 

शुभ-शुभ

आदरणीय श्याम जुनेजा जी के सुझाव को ध्यान में रखिये महिमाश्री. आपकी सलाह हर उस लिखने वाले के लिए समीचीन है जो छंदमुक्त को लापरवाह शाब्दिकता से भरते जाते हैं और उसी को रचनाकर्म कहने की हठ पाले रहते हैं.

आदरणीय को मेरा सादर धन्यवाद.

 

Comment by aman kumar on August 7, 2013 at 3:24pm

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ये सर्वभोमिक सत्य तो नही है पर असत्य भी नही ,

सब पर लागु नही पर किस पर लागु हो जाये कहा भी नही जा सकता 

........ स्त्री विमर्श मे एक अच्छी रचना !

आभार ....

Comment by vijay nikore on August 7, 2013 at 10:40am

आदरणीया महिमा जी:

 

आपने इस सुन्दर रचना के माध्यम नारी की व्यथा का अच्छा चित्रण किया है।

 

सादर,

वि्जय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service