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212221222122212 

 

हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?

बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।

 

यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,

बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।

 

भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,

फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।

 

निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,

दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।

 

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।

 

शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,

क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।

 

याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,

हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।   

 

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

Views: 1499

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:33am

आदरणीया, ग़ज़ल ने यात्रा कर जो मुक़ाम हासिल किये हैं, वे इसकी प्रासंगिकता को सदा बनाये रखते हैं और ग़ज़ल सदा सामयिक रहती है. 

ऐसे प्रयोग होते रहे हैं, हो रहे हैं. इस लिए आपका प्रयास मन को एकदम से भा गया.

इन संदर्भों में कन्हैया लाल नन्दन की तत्सम शब्दावलियों की ग़ज़लें विशेष रूप से उल्लेख्य हैं.

इस ग़ज़ल के लिए पुनः हृदय से बधाई

सादर

Comment by कल्पना रामानी on July 24, 2013 at 9:25am

आदरणीय मित्रों  अजय जी, बृजेश जी, आशीष जी, महिमा जी, शशि जी, आप सबका प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद  

Comment by कल्पना रामानी on July 24, 2013 at 9:22am

आदरणीय सौरभ जी, मैं गजल को उसके नियमों और व्याकरण के साथ नया रूप और दिशा देना चाहती हूँ। हर तरह के विषय और भावों को इस विधा में बाँधना चाहती हूँ। अगर पाठक पसंद करते हैं तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। आप सबका प्रोत्साहन ही मेरा संबल है। आपका हार्दिक धन्यवाद

सादर

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 8:59am

आदरणीया कल्पनाजी, एक विशेष व्यवहार और शैली में हुई इस ग़ज़ल को आपने सनातनी भाव तथा तथ्य दिये हैं. 

संदेश और चेतावनी देती इस प्रस्तुति हेतु बधाई

सादर

Comment by ajay sharma on July 23, 2013 at 11:59pm

wah wah wah ,,,,,,,,,,bahut hi  khoob gazal kahi hai apne,,,,adarniya ,,,,,,,,,

Comment by MAHIMA SHREE on July 23, 2013 at 11:39pm

भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,

फिर तो पीने के लिए, केवल गरल पाएँगे आप।

 

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप। वाह ..आदरणीया बहुत ही सुंदर भावों में रची बसी गजल ..बहुत-२ हार्दिक बधाई आपको

 

 

Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 11:23pm

आदरणीया कल्पना दीदी! आपको शत शत नमन!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on July 23, 2013 at 11:17pm

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।    बहुत खूब  !!!

शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,

क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।   वाह वाह क्या कहने  !!!

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीया !
दिली दाद क़ुबूल कीजिये !!!

Comment by shashi purwar on July 23, 2013 at 10:48pm

waah bahut sundar gajal didi hardik badhai aapko .......

 

यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,

बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।

 waah

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