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शैक्षिक व्यस्तताओं तथा गाँव यात्रा के कारण काफी समय तक ओबीओ से दूर रहना पड़ा ! इतने दिनों में काफी याद आया अपना ये ओबीओ परिवार ! लगभग पाँच महीने बाद आज पुनः ओबीओ पर लौटा हूँ ! सर्वप्रथम सभी आदरणीय मित्रों को नमस्कार, तत्पश्चात ये एक छोटी-सी गज़ल नज़र कर रहा हू ! इसके गुणों-दोषों पर प्रकाश डालकर, मुझ अकिंचन को कृतार्थ करें ! सादर आभार !

अरकान : २१२२/२१२२

जिन्दगी की क्या कहानी !

गर नही आँखों में पानी !

भ्रष्टता घर-घर की दौलत –

भीतियों की ये बयानी !

हो मुआफी गलतियों पर,

ये जवानी है दिवानी !

इश्क को इज्ज़त दिया वो,

जो है उसपे बेज़ुबानी !

दुश्मनी ना, यार हों सब,

और दौलत क्या कमानी !

हेम-से ख्वाबों की बस्ती –

धूल-सी ये जिंदगानी !

-पियुष द्विवेदी भारत

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on July 23, 2013 at 12:21pm

धन्यवाद, आदरणीय विजय भाई जी !

Comment by विजय मिश्र on July 23, 2013 at 12:18pm
"दुश्मनी ना, यार हों सब,और दौलत क्या कमानी !-- मन की बात कही आपने .पियूषजी .छोटे बंद की बेहतरीन और दिलखुश गजल लिखी साहब , शुक्रिया .
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on July 22, 2013 at 8:21pm

'हेम' है केतन भाई जी ! हेम मने सोना होता है !

Comment by Ketan Parmar on July 22, 2013 at 6:26pm

हेम है या हम है कृपया बताये ताकि मेरा प्रश्न हल हो जाये

Comment by Ketan Parmar on July 22, 2013 at 6:23pm

हेम is shabd ka kya matlab hota hai krippya samjhane kaa kasht kare

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on July 22, 2013 at 1:59pm

धन्यवाद, आदरणीय सौरभ जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2013 at 1:26pm

छोटी बह्र पर सीधी बात करती एक सुन्दर सी ग़ज़ल.

आदरणीया राजेश कुमारीजी की सलाह भी पसन्द आयी.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on July 22, 2013 at 12:09pm

धन्यवाद आदरेय राजेश कुमारी जी ! सुझाव का स्वागत है !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2013 at 10:52am

 tanu thadani तनु जी आप से आग्रह है यहाँ सिर्फ टिपण्णी करें कोई लिंक पोस्ट ना करें| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2013 at 10:50am

पियूष द्विवेदी जी छोटी बहर पर बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है सभी अशआर अच्छे लगे 

भ्रष्टता घर-घर की दौलत –

भीतियों की ये बयानी !---ये शेर बहुत पसंद आया 

दुश्मनी ना, यार हों सब,-----इसको ऐसे लिखें तो कैसा लगे--- दुश्मनी ना  हो किसी से 

और दौलत क्या कमानी !

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए दाद कबूल कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

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