For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर कारखानों पर

बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

----------------

ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर कारखानों पर

ये फन वरना मिलेगा जल्द रद्दी की दुकानों पर

 

कलन कहता रहा संभावना सब पर बराबर है

हमेशा बिजलियाँ गिरती रहीं कच्चे मकानों पर

 

लड़ाकू जेट उड़ाये खूब हमने रातदिन लेकिन

कभी पहरा लगा पाये न गिद्धों की उड़ानों पर

 

सभी का हक है जंगल पे कहा खरगोश ने जबसे

तभी से शेर, चीते, लोमड़ी बैठे मचानों पर

 

कहा सबने बनेगा एक दिन ये देश नंबर वन

नतीजा देखकर मुझको हँसी आई रुझानों पर

-----------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Views: 978

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on July 18, 2013 at 2:12pm

क्या बात है ! लगता है आपने बम बनाने का कारखाना लगा रखा है ! क्या धमाके किए हैं सर जी ! मज़ा आ गया ! वाह !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 1:56pm

वीनस भाई,  कैल्कुलस को हिन्दी में कलन भी कहते हैं जिसमें इण्टिग्रेशन के दौरान ’लिमिट टेण्ड्स टू इन्फ़िनिटी..’ का बड़ा महत्त्व है.

आदरणीय धर्मेन्द्र जी का इशारा उसी कैल्कुलस यानि कलन की ओर है जिसके अनुसार इण्टिग्रेशन के क्रम में अनुभूत संभावनाएँ इन्फ़िनिटी यानि अनन्त होती हैं. लेकिन इस गणित का हकीक़त यानि हल कुछ और ही कहता है जो उस शेर के सानी से स्पष्ट है.

शुभम्

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2013 at 6:57pm

शुक्रिया विजय मिश्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2013 at 6:57pm

बहुत बहुत धन्यवाद  Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2013 at 6:57pm

बहुत बहुत धन्यवाद डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2013 at 6:56pm

बहुत बहुत शुक्रिया  shashi purwar जी

Comment by विजय मिश्र on July 15, 2013 at 4:46pm
"नतीजा देखकर मुझको हँसी आई रुझानों पर " -- क्या खूब कही ,जनाब !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 10:02am

कलन कहता रहा संभावना सब पर बराबर है

हमेशा बिजलियाँ गिरती रहीं कच्चे मकानों पर

 

सभी का हक है जंगल पे कहा खरगोश ने जबसे

तभी से शेर, चीते, लोमड़ी बैठे मचानों पर

वाह! बहुत सुन्दर गज़ल आ० धर्मेन्द्र जी .. ये दो शेर तो खास बहुत पसंद आये 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 15, 2013 at 1:06am

बहुत उम्दा मतला हुआ है धर्मेंद्र जी ....दाद कुबूल हो 

Comment by shashi purwar on July 14, 2013 at 10:48pm

waah bahut khoob dharmendra ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service