For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रकृति ने दिया अपना जबाब ......

प्रकृति की

नैसर्गिक चित्रकारी पर

मानव ने खींच दी है

विनाशकारी लकीरे

सूखने लगे है

जलप्रताप, नदियाँ

फिर

एक सा जलजला आया 

समुद्र  की गहराईयों में

और  प्रलय का नाग

निगलने लगा

मानवनिर्मित कृतियों को,

धीरे  धीरे

चित्त्कार उठी धरती

फटने  लगे बादल

बदल गए मौसम

बिगड़ गया  संतुलन

हम

किसे दोष दे ?

प्रकृति  को ?

या मानव को ?

जिसने अपनी

महत्वकांशाओ तले

प्राकृतिक सम्पदा का

विनाश किया,

अंततः  

रौद्र रूप  धारण करके

प्रकृति ने दिया है

अपना जबाब ,

मानव की

कालगुजारी का,

लोलुपता  का,

विध्वंसता का,

जिसका

नशा मानव से

उतरता ही नहीं .

और 

प्रकृति उस नशे को

ग्रहण  करती नहीं .

 --शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on July 15, 2013 at 12:12am

कटु सत्य को सामयिक प्रारूप प्रदान कर अक्षरों में ढाल देना हर किसी के बस की बात नहीं होती

इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by shashi purwar on July 14, 2013 at 5:43pm

सभी मित्रो का तहे दिल से आभार आपने रचना को सहारा और प्रोत्साहित किया

सौरभ जी आपका आशय समझ गयी अभी गौर फरमाया , यह चंद छोटी से टंकण गलती हमारे नेट महाराज की दें है ,आशा है आप माफ़ कर देंगे :) सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2013 at 2:14pm

आदरणीया शशि जी बहुत ही मार्मिक रचना कटु सत्य, प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 13, 2013 at 11:27am

बहुत बड़ा सच है "प्रकृति उस नशे को ग्रहण  करती नहीं", सुन्दर रचना और कटु सत्य कहने के लिए बधाई, शशि जी |

Comment by vijay nikore on July 13, 2013 at 10:27am

अच्छे भाव हैं, आदरणीया। बधाई।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2013 at 12:03am

आपकी तथ्यात्मकता की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है, आदरणीया शशि जी.. . 

बधाई व शुभकामनाएँ.

आप जैसी विदूषी रचनाकार और सचेत पाठक से अक्षरी दोषों के प्रति आग्रही होने की अपेक्षा समीचीन है, आदरणीया.

सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 10:36pm

आ0 शशि जी,   सुन्दर प्रस्तुति।  बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2013 at 5:16pm

जिसका

नशा मानव से

उतरता ही नहीं .

और 

प्रकृति उस नशे को

ग्रहण  करती नहीं .----ये अंतिम पंक्तियाँ रचन को प्रभावी बना रही हैं बहुत खूब बधाई प्रिय शशि जी 

Comment by shashi purwar on July 12, 2013 at 3:21pm

प्राची जी राजेश जी सुझाव के लिए आभार

Comment by shashi purwar on July 12, 2013 at 3:20pm

 राजेश जी आपका कथन मान्य है यह   आ सका रचना में अभी तो बहुत कुछ जोड़ना है इसे  सुधार करूंगी , बहुत समय बाद कलम को विषम परिस्थिति में हाथ में लिए है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service