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चीखती हैं सरहदें

चीखती हैं सरहदें और जागते जवान हैं|

रक्त से शहीदों के अब लाल आसमान है||

शहीद होते पूतों की माताएँ सिसक रही|

बिछुड़ के अपने पति से पत्नियाँ बिलख रही||

 

पित्रहीन बच्चों का भी चेहरा रंगहीन है|

परिवार था खुश कभी आज दीनहीन है||

 

मुआवजे की भीख दे नेता जी उबर लिए|

चेतावनी जो बदले की उससे वो मुकर लिए||

 

सो रहे नेताओं से मेरा एक सवाल है|

जो काटे सिर हेमराज का किसलिए मेहमान है||

 

सर के बदले सर ही अब तुम भी क्यों न मांगते|

बनते खैरख्वाह जो दायित्व से क्यों भागते||

 

नापाक रूपी पाक से तुम मित्रता क्यों चाहते|

जो सांप आस्तीन का उसे दूध तुम क्यों बांटते||

 

साथ पूरा देश है हिम्मत जरा दिखाइए|

तुम राजनीति छोड़ अब देश को बचाइए||

 

अब क्रोध है जवानों में कि सीना चीर डालेंगे|

उठी जो आँख देश पे वो आँख फोड़ डालेंगे||

 

भगत, आज़ाद, बोस जिस देश की पहचान हैं|

उसकी अस्मिता को अपनी जान भी कुर्बान है||

                                 हरीश उप्रेती "करन"

                               मौलिक व् अप्रकाशित

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 27, 2013 at 7:55pm

सरहद पर होती राजनीति पर आक्रोश जाहिर करती जोश भरी रचना के लिए बधाई आ० हरीश उप्रेती जी.

तुम राजनीति छोड़ अब देश को बचाइए||........तुम शब्द के साथ बचाइए का प्रयोग व्याकरणिक रूप से सही नहीं है. 

राजनीति छोड़ आज देश को बचाइए ....यदि उचित लगे तो ऐसे भी कर सकते हैं 

शुभेच्छाएँ 

Comment by coontee mukerji on June 27, 2013 at 4:38pm

बहुत जोशीले पंक्तियों है .......मगर इस प्रकार तो इंसान बदले की गुलाम बनके रह जाएगा फिर क्या होगा ...?बदले की भावना से कभी भी मानवता का हीत नहीं हुआ है. आज की भारत किसी का गुलाम नहीं है , जबकि भगत, आजाद, बोस गुलाम देश को आजाद कराना चाहते थे

तबकी नीति और आज की राजनीति की कोई तुलना नहीं कर सकते हैं.....

अब क्रोध है जवानों में कि सीना चीर डालेंगे|

उठी जो आँख देश पे वो आँख फोड़ डालेंगे||.........देशकाल की दृष्टि से ऐसी दुस्साहस अपने ही पैर में कुलहारी मारेगा......यहाँ कुटनीति की जरूरत है. दुश्मन भी मरे और देश भी बचा रहे.

Comment by aman kumar on June 27, 2013 at 4:13pm

साथ पूरा देश है हिम्मत जरा दिखाइए|

तुम राजनीति छोड़ अब देश को बचाइए|

जोशीले अंदाज़ , बेबाक विचार , अछि रचनाशीलता  बस एक बात  कह सकता हु  आपको       जय हिन्द ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 27, 2013 at 12:56pm
आदरणीय..हरीश जी, देश के लिए अपना, जीवन का बलिदान करने वाले सिपाहियों व शहीदों के नाम आपकी रचना बहुत ही जोश से भरी व भावनात्मक है! ....रचना प्रस्तुति के लिए बधाई

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