बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122, 2122, 2122, 212
पापियों के पाप से देखो धरा भरने लगी
अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी,
ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,
सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,
रंग बदला रूप बदला और बदली है नीयत,
आदमी की तेज बुद्धी घास है चरने लगी,
लोभ ने अंधा किया पागल हवस की भूख ने,
हादसें यूँ देख कर अब रूह तक डरने लगी,
एक ही झटके में देखो हो गई बर्बादियाँ,
मेघ से वर्षा तबाही जोर की झरने लगी..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया शालिनी जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
ये प्राकृतिक आपदाएँ है इंसान क्या करे , कुछ बुरे लोगों के कारण समस्त इंसान को कोस नहीं सकते.सामयिक मांग है - सहानुभूति और मदद .
ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,
सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,
बढ़िया ग़ज़ल भाई अरुण जी !!!
आ0 अरून भाई जी, बहुत ही सुन्दर गजल की शानदार प्रस्तुति। तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,
वाह क्या बात है अरुण बहुत खूब सामयिक गजल लिखी है हार्दिक बधाई
गजल के अश'आर अपने में मायने लिए है, खूबसूरत है रचना
एक ही झटके में देखो हो गई बर्बादियाँ,
मेघ से वर्षा तबाही जोर की झरने लगी.. … वाह!!
लोभ ने अंधा किया पागल हवस की भूख ने,
हादसें यूँ देख कर अब रूह तक डरने लगी,///////वाह वाह
बहुत खूब आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी ///ज़ोरदार ///हार्दिक बहुत बड़ी वाली बधाई //
तीसरे शेर में ... नीयत ... क्या ठीक है? कृपया देख लें
वाह वाह अरुण जी क्या गज़ल कही है आपने .. बहुत खूब .. हरेक अश'आर सच्चाई से रु ब रु करता है ..
ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,
सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,... आज के समय की कड़वी सच्चाई .. वाह
और आज के हालत को क्या खूबी से बयाँ किया है आपने ....लोभ ने अंधा किया पागल हवस की भूख ने,
हादसें यूँ देख कर अब रूह तक डरने लगी,... लाजवाब
और आखिरी शेर .. आज की उत्तराखंड त्रासदी को बयाँ करता हुआ बेहतरीन बन पड़ा है ....
बहुत बहुत बधाई के पत्र हैं आप इस बेहतरीन गज़ल के लिए
साभार
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