For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक अँधेरी गली

सुनसान

वीरान

पथिक व्यथित

हलाकान

 

न कोई

हलचल

न कोई

आवाज

न साज

पथिक व्यथित

उदास

 

गहन अँधेरा

कालिमा का बसेरा

ह्रदय के स्पंदन

स्वर में बदल रहे हैं

चीत्कार

स्वयं की

बस स्वयं की

 

वर्षों सुनसान

गली में

चलते चलते

स्वयं से

परिचर्चा करते करते

कभी थाम लेता था

हाथ

स्वयं का दिलासा भरा

कभी स्वयं को

समझा लेता था

स्वयं को

पथिक व्यथित

मौन

 

न ठोकरें

न कांटे

निकल जाना चाहता था

इस गली से

किसी उजाले में

किसी सबेरे की तलाश

में झपकी

किन्तु आँख

झूठ कब बोलती हैं

पथिक व्यथित

 

कडवे घूँट

पुरुषार्थ के

पीता चला जा रहा है

अन्धकार में

पथिक व्यथित

संसार में

 

सहसा

स्वयं को सामने खडा देखा

स्वयं से लज्जित सा

निराशा में डूबा सा

बाल  बिखरे से

दाढ़ी बढ़ी हुई

ह्रदय की पीड़ा

मुख पर साफ़ दिखाई देती

व्यथित चिंतित

 

पूछा मैं तो अन्धकार में

हूँ पर क्या तुम भी ???

 

जबाब आया

हाँ मैं भी इसी

अन्धकार में फिरता हूँ

तुम्हारी तलाश में

मैंने खोये हैं

अपने

न जाने कितने

सत्य जैसे जैसे

करीब आता

तुम दूर होते जाते

और अपने भी

 

किन्तु तुम आज मिले

हो सत्य के साथ

शून्य हो चुके

पता है

तुम्हारी चीत्कारें

सुनता था मैं

तुमसे बातें करता था मैं

और तुम मुझे

पहचान न सके

देख न सके

मैं हूँ तुम्हारा

अपना केवल में

जिसने कभी नहीं छोड़ा

तुम्हारा साथ

मैं हूँ मन

किन्तु बदल गया हूँ

तुमने मुझे दूर कर दिया है

झूठ से

दिखावे से

अहंकार से

मुझमें नहीं है

हिम्मत

तुम्हारे सामने

ठहरने की

तुम सत्य की

अँधेरी गली से निकलो

मित्र देखो

मुझे कैसा हो गया हूँ

तुम्हारे साथ रहते रहते

चलो

झूठ की रंगीन गलियों में

फिर से

हे पथिक 

संदीप पटेल “दीप”

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2013 at 1:25pm
मन से विरक्त हो सत्यान्वेषण का प्रयास ,विरक्ति का कष्ट ,माया से उबरने की चेष्टा अँधेरे से उजाले की प्राप्ति के लिए आत्मा की छटपटाहट-- इन सबका सुंदर प्रवाह संदीपजी किन्तु
"चलो
झूठ की रंगीन गलियों में
फिर से " --- चौंका दिया .
Comment by aman kumar on June 4, 2013 at 9:17am

सुंदर रचना...शुभकामनायें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 12:58pm

अंतर्मन प्रारब्धी को बरगलाता भी है क्या ? पहली दफ़ा सुन रहा हूँ.

दूसरे, भावनाओं को शाब्दिक करते चले जाना यदि कविता करना होती तो फिर अतुकांत की वैचारिकता उथली नहीं हो जायेगी ? 

मुझे अपार प्रसन्नता हई कि भाई बृजेशी ने गंभीरता से इस रचना को पढा है  तदनुरूप अपनी बातें कही हैं . 

शुभेच्छाएँ

Comment by coontee mukerji on June 3, 2013 at 1:22am

गहन अँधेरा

कालिमा का बसेरा

ह्रदय के स्पंदन

स्वर में बदल रहे हैं

चीत्कार

स्वयं की

बस स्वयं की...........इंसान भीड़  में भी कहीं न कहीं  अकेला रह ही जाता है तब  उसकी अंतरात्मा ही उसे अच्छे बुरे की पहचान कराती है.

संदीप जी इंसानी मनोभाव पर लिखी बहुत ही अच्छी कृति है........हाँ  इतना कह सकती हूँ.......हे पथिक रास्ता लम्बा है .......झोली अपना समेट लो.......शुभेच्छु / कुंती

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 1:17am

अच्छे उद्गारों के साथ अच्छा प्रयास । उत्तम ।

Comment by yatindra pandey on June 2, 2013 at 11:40pm

behtrin

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2013 at 8:13pm

मैं एकदम से बृजेश जी की बात ही कहने वाला था, तब तक देखा बृजेश जी कह दियें हैं । ध्यान देने की जरुरत है । 

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 8:10pm

आदरणीय संदीप जी आपका बहुत बधाई! बहुत उन्नत विचारों के साथ रचनाकर्म किया है आपने!
आप इसे अन्यथा न लें लेकिन कविता की लंबाई अनावश्यक रूप् से बढ़ी है। यदि पंक्तियों को फिर से व्यवस्थित कर दिया जाए तो कविता छोटी और आकर्षक हो जाएगी।
कविता का अंत विरोधाभासी वक्तव्य दे रहा है। इस पर आपका मार्गदर्शन चाहूंगा।
सादर!

Comment by Vindu Babu on June 2, 2013 at 7:53pm
इस सार्वभौमिक रचनात्मक प्रस्तुति के लिए सादर बधाई आदरणीय पटेल जी।
Comment by ram shiromani pathak on June 2, 2013 at 5:58pm

"आदरणीय भाई संदीप जी,/////////बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है अपने//हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service