For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विश्व में आका हमारे//गजल//

 २१२२/२१२२/२१२२/२१२

 

वे सुना है चाँद पर बस्ती बसाना चाहते।

विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते।

 

लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े  हैं सीढ़ियाँ,

शीश पर अब पाँव रख, आकाश पाना चाहते।

 

भर लिए गोदाम लेकिन, पेट भरता ही नहीं,

दीन-दुखियों के निवाले, बेच खाना चाहते।

 

बाँटते वैसाखियाँ, जन-जन को पहले कर अपंग,

दर्द देकर बेरहम, मरहम लगाना चाहते।

 

खूब दोहन कर निचोड़ा, उर्वरा भू को प्रथम,   

अब हलक की प्यास, लोगों की सुखाना चाहते।  

 

शहरियत से बाँधकर, बँधुआ किया ग्रामीण को,  

गाँव का अस्तित्व ही, शायद मिटाना चाहते।  

 

सिर चढ़ी अंग्रेज़ियत, देशी  भुला दीं बोलियाँ,

बदनियत फिर से, गुलामी को बुलाना चाहते।

 

देश जाए या रसातल, या हो दुश्मन के अधीन,

दे हवा आतंक को, कुर्सी बचाना चाहते।

 

कोशिशें नापाक उनकी, खाक कर दें साथियों,

खाक में जो स्वत्व जन-जन का मिलाना चाहते। 

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी  

Views: 1347

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on June 3, 2013 at 8:55pm

आदरणीय यतीन्द्र जी,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on June 3, 2013 at 8:54pm

आदरणीय जितेंद्र जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on June 3, 2013 at 8:53pm

राजेश जी, आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी से मन बहुत हर्षित हुआ । आपका हार्दिक धन्यवाद

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on June 3, 2013 at 6:10pm

कोशिशें नापाक उनकी, खाक कर दें साथियों,

खाक में जो स्वत्व जन-जन का मिलाना चाहते।

हमेशा की तरह एक बार पुन: आपकी एक उम्‍दा रचना । पढ़ना भी अच्‍छा लग एवं टिप्‍पणी तो ऐसी रचनाओं पर अपने आप हो जाती हैं,सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 3, 2013 at 3:39pm
आदरणीया..कल्पना जी, बहुत खूबसूरत गजल....शुभकामनायें आदरणीया
Comment by वेदिका on June 3, 2013 at 3:23pm

आदरणीया कल्पना जी! सादर नमन 

बहुत ही उत्कृष्ट कोटि की गजल लिखी आपने ..आपने उन सभी पीडाओं का बखान कर दिया जो तथाकथित आका द्वारा दी हुयी है। 
बहुत ही वाह वाह वाले अश'आर पेश हुए है गजल में
 

भर लिए गोदाम लेकिन, पेट भरता ही नहीं,

दीन-दुखियों के निवाले, बेच खाना चाहते।

 

बाँटते वैसाखियाँ, जन-जन को पहले कर अपंग,

दर्द देकर बेरहम, मरहम लगाना चाहते।

खाक में जो स्वत्व जन-जन का मिलाना चाहते। ...में स्वत्व समझ नही आया बस।  क्या इसका अभिप्राय अस्तित्व से है या स्वाइत्तेता से??? 

अनंत शुभकामनाये आदरणीया  

 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 12:48pm

आदरणीया कल्पनाजी, आपके प्रयास नव-हस्ताक्षरों के लिए उदाहरण सदृश होते हैं.

हर शेर उम्दा हुआ है. तल्ख़ियाँ मात्र शाब्दिक भँड़ास नहीं हैं. आपने इन्हें महसूस कर शब्दों में उकेरा है.

सादर बधाइयाँ

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 9:35am

वाह वाह कल्पना जी बहुत उत्कृष्ट अद्भुत निर्दुष्ट ग़ज़ल कही आपने............ बहुत बधाई 

कोशिशें नापाक उनकी, खाक कर दें साथियों,

खाक में जो स्वत्व जन-जन का मिलाना चाहते। 

 

Comment by coontee mukerji on June 3, 2013 at 1:05am

हमेशा की तरह एक और सुंदर रचना ,बहुत पैनी दृश्टि आपने समाज के कुछ अंधेरे पहलू पर प्रकाश डाला है....................

खूब दोहन कर निचोड़ा, उर्वरा भू को प्रथम,   

अब हलक की प्यास, लोगों की सुखाना चाहते।.....................सादर / कुंती

Comment by yatindra pandey on June 2, 2013 at 11:46pm

kya kahu bahut sundar aur jhakjor dene vali panktiya bani hai

mai to aap ka fan ho gaya mam

aabhar swekar kare

yatindra pandey

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service