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भूल जाऊंगी तुझे.....

एक बीते वक़्त सा

कुछ भूल जाना अच्छा होगा

जिसके दामन में दुःख के सिवा

मन को भिगोते

गलतफहमियो के घने बादल,

शिकायतों की बिजलियां

गरजते - गडगडाते काले

शक के भरे बरसने को

बेकाबू सवालों के मेघ

और कुछ डरावनी रातें होंगी;

भूल जाना कुछ कड़वे शब्द

उनकी तपिश आँखों को

और कभी जो दिल को

जलाती रही ओस से भीगी,

ठंडी रातों में भी और

दर्द देती रही मेरे शांत पड़े

कानो को जो अकसर,

दर्द से कराह जाते हैं

तड़प जाते है इतने कि मैं बस

अपने कानो पर हाथ रख लूँ और

जोर से चिल्लाऊं

चुप हो जाओ - चुप हो जाओ;

दिन, दिन से रात और

रात से न जाने कितनी रातें और

कितने दिन-रात समय को कोसा

खुद को कोसा,

भूल जा ये कह कर आंसू पोछे

उसको सोचा खुद को सोचा,

अपनी परछाईयों को टटोला

अपने निशान देखे लेकिन

कुछ न मिला

बस तन्हाई मिली - चुप्पी मिली;

मैं तो थी ही कोरी साफ़ चंचल मन की

न छल जानूं - न चाल

मैं बहते पानी सी निर्मल पावन,

अपने मन के  दीये  से सबको

एक ही उजाले से रोशन कर

देखा करती थी;

फिर मैं क्यूँ सोचूं तुझको

मुझ संग कोई नहीं है मेल;

तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता

क्यूँ तुझको याद करू मैं

क्यूँ समय बरबाद करू मैं

भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के;

नहीं तू मंजिल किसी की

जो हो भी नही सकती राह किसी की

भूल जाऊंगी तुझे - अब मैं भूल जाऊंगी.....

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 11:16am

तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता

क्यूँ तुझको याद करू मैं

प्रियंका जी 

सादर बधाई 

सुन्दर भाव की रचना हेतु. 

Comment by manoj shukla on May 6, 2013 at 11:00am
बहुत सुन्दर भाव आदर्णीया....बधाई स्वीकार करें
Comment by coontee mukerji on May 6, 2013 at 10:49am

गलतफहमियो के घने बादल,

शिकायतों की बिजलियां

गरजते - गडगडाते काले

शक के भरे बरसने को

बेकाबू सवालों के मेघ............शक केंसर से भी भयंकर बीमारी है .....जिसने भी अपने रिश्ते  पर शक किया रूसवाई के सिवा उसे कुछ  न मिला. .....

मैं तो थी ही कोरी साफ़ चंचल मन की

न छल जानूं - न चाल

मैं बहते पानी सी निर्मल पावन,

अपने मन के  दीये  से सबको

एक ही उजाले से रोशन कर

देखा करती थी.............अक्सर निश्छ्ल मन वाले ही शक के घेरे में आते  हैं .....यह दुनिया का दस्तूर बन गया है .

भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के;

नहीं तू मंजिल किसी की

जो हो भी नही सकती राह किसी की

भूल जाऊंगी तुझे - अब मैं भूल जाऊंगी........जीवन बहुत सुंदर है और बहुत कम पल भी है इसीलिये कुछ कड़वी बातें भूल जाना ही अच्छा है . हृदय  की पीड़ा को आपने बहुत मामिर्क ढंग से व्यक्त किया है . आदर्णिया /सादर / कुंती.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 6, 2013 at 9:28am

आ0 प्रियंका जी,
"भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के,
नहीं तू मंजिल किसी की
जो हो भी नही सकती राह किसी की
भूल जाऊंगी तुझे . अब मैं भूल जाऊंगी"......सकारात्मक सुन्दर भाव। ढेरों शुभकामनाएं और बधाईयां। सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 6, 2013 at 9:04am

जी ऐसी नफरत से तो गम दूर करने को भूल जाने का निर्णय ही उचित है, ऐसी सोच के साथ लिखी सुंदर रचना के लिए बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 6, 2013 at 8:50am

किसी से नफ़रत की इन्तहा पर रची सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका सिंह जी.

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 6, 2013 at 7:46am

काफी समय बाद एक बेहतरीन संजीदा रचना पढ़ने को मिली.....और ये उपमा तो गजब है......

तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता

क्यूँ तुझको याद करू मैं.........

लख-लख बधाइयाँ......

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