For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देवता ! मुझे शरण दो

देवता ! मुझे शरण दो !
अस्सी साल की बुढ़िया ,
लाठी टेकती आयी ,
गुहार करने
मंदिर आंगन द्वार .

हाथ उठाकर ,
घण्टी भी बजा न सकी .
जर्जर काया जीवन से त्रस्त ,
और दुखित -
अपनों से सतायी हुई, उपेक्षित .

माँग रही थी मृत्यु का वरदान ,
पर – देवता सोये थे निश्चिंत .
कम्पित कर जोड़े ,
साथ न दे रही थी
थर्राती वाणी.

‘’ मैया ! घर जाओ ‘’ बोले पुजारी
‘’ कहाँ जाऊँ बेटा, कहीं नहीं कोई ‘’.
जो कुछ था लूट लिया अपनों ने ,
‘’ पर वे सुखी रहें ‘’ बोली दुखिया .
फिर होंठ हिले
‘’ मुझे उठा लो देवता ! ‘’
‘’ दे दो मुक्ति ,
तेरे चरणों में सर पटकूँ अपना “ -
‘’ मैया ! अभी बाकी है दाना पानी तेरा,
जब तक है प्राण , पड़ेगा जीना
यह किसी के वश में नहीं –
सबका कर्म अपना - अपना
देवता को कर दो अर्पण
तन मन सारा .’’

रोती कलपती उठी , चली मैया ,
राह पथरीला, पथराई दृष्टि .
हरि नाम जपती ,
माँग रही थी दुहाई ,
प्रकृति भी रोई, गहरी श्वास छोड़ी
मगर -
देखता रहा ,
टुकुर टुकुर
मंदिर का देवता .

Views: 513

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 11:59am

मगर -
देखता रहा , 
टुकुर टुकुर 
मंदिर का देवता

आदरनिया सादर बधै 

मारमिक, 

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 11:14pm

मार्मिक रचना! दिल को दूर तक छू गयी। बधाई आपको।

Comment by coontee mukerji on May 5, 2013 at 3:47pm

आप सब की कृपा बनी रहे .../ सादर / कुंती .

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 3:39pm

यथार्थ जीवन के कटु सत्य को दर्शाती सुन्दर मार्मिक रचना. आदरणीया कुंती जी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 2:47pm

आजकल तो हर कोई अपनों से ही लुट रहा है | नेकी करते हाथ जल रहे है पराये ही कंधा दे रहे है 

इन्ही भावो में रची सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया कुंती जी 

Comment by vijay nikore on May 5, 2013 at 6:53am

आदरणीया कुंती जी:

 

ऐसा ही कितने माता-पिता के साथ हो रहा है...

वह जो बच्चों को कंधे पर उठा सकते थे, अब बच्चे

उन्हीं को कंधा नहीं दे सकते..। आपकी रचना सदैव

वास्तविक्ता के कटु सत्य से रंगी होती है।

 

बधाई। लिखती रहें, आनन्द देती रहें।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by manoj shukla on May 5, 2013 at 5:34am
बहुत ही सुन्दर रचना आदर्णीया ....बधाई स्वीकार करें ...सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2013 at 8:55pm

आ0 कुन्ती जी, ’’जो कुछ था लूट लिया अपनों ने,
’पर वे सुखी रहें’ बोली दुखिया।’’ वाह रे! मां, ^अबला तेरी यही कहानी...आंचल में है दूध और आंखों में पानी^ ...सदा से यही होता आया है। अतिसुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service