For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे युग में, मेरे युग में/पापा कोई मेल नहीं है

अलसाई

आंखों से उठना

जूते, टाई

फंदे कसना

किसी तरह से

पेट पूरकर

पगलाए

कदमों से भगना

ज्ञान कुंड की इस ज्‍वाला में

निश दिन जलना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

पंछी, तितली

खो गए सारे

धब्‍बों से

दिखते हैं तारे

फूल, कली भी

हुए मुहाजि़र

प्राण छौंकते

कर्कश नारे

धक्‍के खाते आना-जाना

धुआं निगलना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

तुमको जो

मैदान मिले थे

हरे-भरे

उन्‍वान मिले थे

आंगन, देहरी

बाग-बगीचे

हर जर्रे में

जान मिले थे

जिन डब्‍बों में हम रहते हैं

उनमें रहना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

खिड़की से

बारिश को तकना

बंदिश में घुट

आंसू पीना

और उठाकर

कोरा कागज

नौका, पानी

नीरस अकना

ऐसे सीलन भरे समय में

सुर में गाना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

सौ में सौ

नंबर को पाना

ऊँची शोहरत

नाम कमाना

बड़ा कषैला

मेरा समय है

मुश्किल हरपल

साख बचाना

काल कलन के कलपुर्जों संग

ताल मिलाना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

सिर पर है

तलवार दुधारी

राहों में

संगीन पड़े हैं

जहां जिधर भी

नज़र घुमाऊं

लोग-बाग ले

बीन खड़े हैं

ऐसी झंझा में दीपक को

रोज जलाना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

तुम भी तो

थामे हो नपने

रूह जलाती

तेरे सपने

क़दम बढ़ाते

भी डरता हूं

कहीं लगो ना

तुम्‍हीं धधकने

चरमर कंधों की पीड़ा को

रोज दबाना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

(पूर्णत:मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 798

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on April 30, 2013 at 11:25am

wonderful .  !!....rozmarra kee zindagi  ka bahut  hi  sundar  chitran  . ...dil  really  khush  ho gaya. rajesh ji.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 30, 2013 at 10:00am

पीढ़ी दर पीढ़ी यह अंतराल (जनरेशन gap) चलता रहा है और चलता ही रहेगा | संघर्ष हर समय रहा है रहेगा पर पिछली 

पीढ़ी/अगली पीढ़ी एक दुसरे को यही कहती रहेगी हामारे जमाने में तो ------ खेल नहीं है | रचना सुन्दर भाव शब्दों में 

पिरोने के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री राजेश कुमारजी झा 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 8:51am

आ0 राजेश जी, अति सुन्दर गीत पढ़कर बहुत अच्छा लगा।   ’चरमर कंधों की पीड़ा को, रोज दबाना खेल नहीं है’। बहुत-बहुत दिली बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by manoj shukla on April 30, 2013 at 7:38am
ऊँची शोहरत
नाम कमाना
बड़ा कषैला
मेरा समय है
मुश्किल हरपल
साख बचाना
काल कलन के कलपुर्जों संग
ताल मिलाना खेल नही.......
बहुत सुन्दर रचना.... बधाई स्वीकार करें आदर्णीय
Comment by manoj shukla on April 30, 2013 at 7:37am
ऊँची शोहरत
नाम कमाना
बड़ा कषैला
मेरा समय है
मुश्किल हरपल
साख बचाना
काल कलन के कलपुर्जों संग
ताल मिलाना खेल नही.......
बहुत सुन्दर रचना.... बधाई स्वीकार करें आदर्णीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service