For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आधी रात के सपने देकर

तुम मुझको बहला देते हो

जब चाहे जी

अपना लेते हो

जब चाहे जी

ठुकरा देते हो

कैसे लिखूं

तुमको पतियां

तुम वादे

झुठला देते हो

आधी रात के ................

या देवी का

जयघोष तो करते

फिर क्‍योंकर

चुभला देते हो

अपने छत पर

बाग लगाकर

कलियों को

दहला देते हो

आधी रात के ................

कहती हूं जो

तुमको प्रियतम

हक फौरन

जतला देते हो

और करूं जो

हक की बातें

जी मेरा

मितला देते हो

आधी रात के ................

जाने कितनी

जंजीरों में

पग मेरे

उलझा देते हो

घनघोर घटा को

मेरा आंचल

तुम कैसे

दिखला देते हो

आधी रात के ................

तब जब करूणा

डूब मरी है

तुम अक्‍सर

मुसका लेते हो

जाने कैसे

किस मंतर से

तुम सबको

फुसला लेते हो

आधी रात के ................

नए बहाने

रोज बनाकर

तुम मुझको

धुंधला देते हो

बौने मानव   !

और कहूं क्‍या

तुम रिश्‍ते

गंदला देते हो

आधी रात के ................

(पूर्णतया मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 30, 2013 at 7:44pm

आदरणीय राजेश जी,

प्रस्तुत रचना का मर्मस्पर्शी कथ्य बिल्कुल स्त्री मन के साथ नितप्रति होते छलावे को प्रस्तुत करता है.. हर बंद में उसके छले जाने का क्रंदन है... इस संवेदनशील लेखन के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by भावना तिवारी on April 30, 2013 at 2:31pm

आधी रात के सपने देकर

तुम मुझको बहला देते हो......

जाने कितनी

जंजीरों में

पग मेरे

उलझा देते हो

घनघोर घटा को

मेरा आंचल

तुम कैसे

दिखला देते हो

आधी रात के ..............waah ..bahut sundar ..pravahmay rachnaa ....bahut bahut badhaai ..........

किस मंतर से

तुम सबको

फुसला लेते हो

आधी रात के .......

Comment by राजेश 'मृदु' on April 30, 2013 at 2:00pm

विजय निकोर जी, आपका हार्दिक आभार

Comment by vijay nikore on April 29, 2013 at 7:01pm

भावाभिव्यक्ति अच्छी है।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:22pm

आदरणीय कुंति जी, बसंत नेमा जी, प्रदीप जी, लक्ष्‍मण जी एवं रक्‍ताले साहब, आप सबकी उपस्थिति एवं हर्षकारी प्रतिक्रिया आगे की रचनाओं को बड़ा बल प्रदान करेगी, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:20pm

आदरणीय सीमा जी, आपने बिलकुल ठीक पकड़ा है रचना पोस्‍ट करने में हड़बड़ी की बात स्‍वीकार करता हूं, इसे और पुष्‍ट किया जा सकता था परंतु मन किसी और विषय पर केंद्रित हो गया, क्षमा चाहता हूं, अगली बार ध्‍यान रखूंगा, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:18pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी एवं विनय जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2013 at 9:21am

जिसका कद किसी तरह से भी फिट न बैठे उसे बोने मानव कह देना बिलकुल ठीक है. सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश जी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 27, 2013 at 2:22pm

मानव की ये फिदरत है की वह अपने मतलब के खातिर बहाने बनाकर क्षणिक ख़ुशी देता है | इसको बखूबी शब्दों पिरोकर 

प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई श्री राजेश कुमार झा जी | एक बात "जब चाहे जी" की जगह यदि "जब जी चाहे" लिखा 

जावे तो ज्यादा उचित रहेगा | सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 27, 2013 at 2:08pm

नए बहाने

रोज बनाकर

तुम मुझको

धुंधला देते हो

बौने मानव   !

और कहूं क्‍या

तुम रिश्‍ते

गंदला देते हो

भाव प्रधान सुन्दर रचना हेतु बधाई, आदरणीय झा साहब जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
56 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
56 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
56 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service