For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इंसान की फ़ितरत
मुझे M B C (मॉरिशस ब्रॉड्कास्टिंग कॉर्पोरेशन) में स्पीकर पोस्ट के लिये एक साक्षात्कार देना था . उस दिन तेज़ बारिश हो रही थी . मैं इंटरव्यू देकर बाहर खड़ी , बारिश के रुकने की प्रतीक्षा करने लगी . पानी था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था . एक तो जुलाई का महीना उस पर क्यूपीप की सरदी . ठंड से मेरे दाँत बजने लगे थे . मेरे पास ढंग का स्वेटर भी नहीं था जो साथ लेती . शाम के पाँच बज गये थे और अंधेरा भी होने लगा था. मैं चिंतित होने लगी थी अगर बस छूट जाएगी तो मैं क्या करूँगी ? इसी सोच में मैं भारी बरसात में कदम बढ़ाने ही वाली थी कि किसीने पीछे से कहा ,
‘’ रुकिये ! आप भीग जाएँगी .’’
मैंने पीछे मुड़कर देखा एक नौजवान हाथ में अपना कोट लिये खड़ा था .
‘’ जी आप कौन हैं .’’ मैंने उससे पूछा .
‘’ मैं टी वी पत्रकार राजेश हूँ , अगर आप बुरा ना मानें तो चलिये आपको बस स्टैण्ड तक छोड़ दूँ ‘’
उसने अपनी गाड़ी की ओर इशारा किया . नाम और चेहरा जाना पहचाना लगा . मैंने मन ही मन कहा -
‘’ नेकी और पूछ पूछ ‘’
मैं उसकी गाड़ी में बैठ गयी . बारिश के कारण सभी लोग जल्दी जल्दी अपने घर चले गये थे. बस स्टैण्ड पर एक भी बस नहीं था . मैं रूआँसू हो गयी . मुझे परेशान देख उसने कहा ‘’ घबड़ाइये नहीं अपना पता बताइये मैं आपको घर तक छोड़ देता हूँ . उसने धीरे से कहा – ‘’ अब मुस्कराइये ताकि रास्ता अच्छा कटे .’’
मैं आश्वस्त हो गयी और तनाव रहित होकर मुस्करा दी . गाड़ी चल पड़ी . चिकने कोलतार का टेढ़ा-मेढ़ा नया रास्ता , दोनों तरफ़ दूर दूर तक लहराती चाय की खेती . काली घटाएँ घिरी हुई थी कभी रुक कर तो कभी तेज़ बारिश हो रही थी . राजेश ने कैसेट ऑन कर दिया . मधुर गीत बजने लगा . .....
‘’तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है , जहाँ भी जाऊँ तेरी महफ़िल है .’’
बरसाती शाम और झुटपुट अंधेरा , बाहर कड़ाके की सरदी और गाड़ी के भीतर गुनगुनी ऊष्णता . इंसान के जीवन में इससे बड़ी रोमांचक घड़ी और क्या हो सकती है .
राजेश मुझसे बातें करता जा रहा था . ऐसी बातें जो दो युवा आपस में मिलने पर करते हैं . वह बता रहा था कि उसकी शादी पक्की हो गयी है . वह साधारण जीवन उच्च विचार में विश्वास रखता है और पूरे दिल से उस पर अमल भी करता है . मैं उसकी बात मान रही थी क्योंकि एक उदाहरण तो मेरे सामने था . अन्यथा एक अजनबी लड़की को कौन भारी बरसात में घर तक छोड़ने जाएगा .
उसने मुझसे पूछा कि शादी के बारे में मेरा क्या ख्याल है और मैं कब शादी करना चाहूँगी . मैंने कहा...
‘’ अभी तो मेरी शिक्षा पूरी हुई है कोई ढंग की नौकरी मिल जाए तब सोचूँगी .’’
ऐसे ही बातें करते हुए रास्ता कट गया . मेरे बताए हुए पते पर गाड़ी मेरे चाचा के महलनुमा घर के सामने रुक गयी. उसी आलीशान भवन से हो कर मुझे अपने घर जाना होता था क्योंकि मेरा घर ठीक उस मकान के पीछे था . राजेश उस घर को मेरा घर समझ बैठा . जब मैं गाड़ी से उतरने लगी तो उसने अपना कोट मेरे कंधे पर रखकर कहा.. ‘’ इसे अपने पीठ पर रख लो अन्यथा तुम्हें ठंड लग जाएगी. ‘’ मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ अतः मैंने कहा – ‘मैं तो घर आ ही गयी हूँ. कोट लेकर क्या करूँगी इसे लौटाने के लिये आपको कहाँ ढूँढ़ती फिरूँगी .’’
‘’मैं ही आ जाऊँगा ‘’ उसने हँसकर कहा. मेरा तो पसीना छूट गया . मैंने मन ही मन सोचा –
‘’अब तो कुछ ज्यादा ही हो रहा है ‘’ अतः तुरंत कहा ‘’आप मेरा फ़ोन नम्बर नोट कर लें.
फ़ोन पर बता दीजिएगा मैं ही आ जाऊँगी ‘’ मैंने मौखिक रूप में अपना नम्बर बता दिया . उसे धन्यवाद दिया और समय गँवाए बिना चाचा के घर में घुस गयी . वह आपसे कब तुम पर आ गया था मैंने ध्यान ही नहीं दिया था .
दूसरे दिन ही राजेश का फ़ोन आ गया . उसने मुझे क्यूपीप बुलाया . मैं उसका कोट लेकर
गयी . वह जैसे बड़ी बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रहा था . मुझे देखते ही अपनी गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया . मैं गाड़ी में बैठ गयी . वह मुझे क्यूपीप के सबसे सुंदर जगह त्रू ओ सेर्फ़ ( मृग कुण्ड – हिंदी अनुवाद ) ले गया . रास्ते के किनारे गाड़ी खड़ी कर दी और हम उससे बाहर आ गये .
त्रू ओ सेर्फ़ समुद्र तल से लगभग 602 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है . सेंट्रल प्लाटो पर होने के कारण यहाँ हवा मुक्त होकर बहती है . यहाँ से क्यूपीप का बड़ा ही मनोहारी दृश्य नज़र आता है . दूर दूर तक मॉरिशस का हरा नीला आँचल लहराता रहता है . मैं मंत्रमुग्ध होकर आकाश और समुद्र् की आपस में मिलती रेखाओं को देखने में मग्न थी कि राजेश ने मुझे हरी भरी घास की कालीन पर बैठने को कहा. मैं बैठ गयी . वह भी मेरे पास बैठ गया . वक्त भी जैसे हमारे साथ बैठ गया . कुछ देर चुप्पी साधने के बाद राजेश ने कहा – कुहू ! तुम जानती हो मैं तुम्हें यहाँ क्यों लाया हूँ ?’’
‘’ हाँ, आपको अपना कोट चाहिये .’’ मैंने सच्ची बात कही .
‘’ नहीं , बुद्धू लड़की . कल से मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा . लगता है मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ .’’ उसने भावुक होकर कहा .
‘’ लेकिन आपकी तो शादी पक्की हो गयी है .’’ मैं थोड़ा सतर्क होने लगी थी .
‘’ तो क्या हुआ, टूट भी तो सकती है. अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे परिवार वालों से मिलूँ . तुममें मेरी जीवनसंगिनी बनने लायक सब गुण हैं .’’
वह बहुत कुछ बोल रहा था और मैं कुछ और ही सोच रही थी. मेरे गुरू जी कहते थे कि जीवन में बहुत सोच समझ कर कोई निर्णय लेना चाहिये . जल्दबाज़ी शैतान का काम होता है. एक ही मुलाकात में राजेश को मुझमें न जाने कौन सा गुण नज़र आ गया था जिससे उसकी होनेवाली जीवनसाथी गुणरहित हो गयी . मैं उसे बहुत कुछ कह सकती थी , लेकिन समय की नज़ाकत देखकर मैं चुप रही . हम सार्वजनिक जगह पर थे लेकिन समय उसके पक्ष में था . आशिकों से दुश्मनी मोल लेना बहुत महंगा पड़ता है . मैंने हमेशा से अपने जीवन के प्रति ठोस निर्णय लिया है . अपना विचार जल्दी बदलती नहीं हूँ. मैं उससे बहस करना उचित नहीं समझी . मेरे सामने समस्या यह थी कि इसे कैसे जल्दी टालूँ . वह उठने का नाम नहीं ले रहा था . इधर उधर देखने पर मुझे सामने ही एक लाल छ्त वाला घर दिखा . मेरे दिमाग में एक युक्ति सूझी .
मैंने कहा ‘’ मुझे भूख लगी है और शादी की बात तो घर में भी बैठ कर हो सकती है . ‘’
दिन के एक बज रहे थे अतः उसे भी लगा कि हमने तो कुछ खाया ही नहीं है. उसने कहा ’’ चलो एक अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं. ‘’
‘’ नहीं शुक्रिया. मुझे अपने मामा के घर जाना है. उधर देखिये लाल छत वाले कतार में जो घर हैं उसी में से एक मेरे मामा का घर है . ‘’ मैंने झूठ का सहारा लिया.
मैं उठ खड़ी हुई , उसे भी उठना पड़ा .
‘’ चलो मैं तुम्हें वहाँ तक पहुँचा दूँ ‘’ उसने अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए कहा .
‘’ नहीं मैं पैदल जाना उचित समझती हूँ.’’ मैं जल्द से जल्द उससे पीछा छुड़ाना चाहती थी. इसे संयोग कहूँ कि मुझपर ईश्वर की कृपा , राजेश का एक मित्र अपनी प्रेमिका के साथ वहाँ आ गया . दोनों एक दूसरे को देखकर सकपका गये . मैंने मौके का फ़ायदा उठाया, राजेश से विदा ली और चल दी . वह चाहकर भी मुझे रोक न सका .
सप्ताह भर राजेश मुझे फ़ोन पर फ़ोन करता रहा. मैंने उसकी एक न सुनी. MBC में काम करने का इरादा भी त्याग कर कहीं और काम की तलाश करने लगी .
इधर वह मेरी बेरूखी देखकर मेरे चाचा के घर आ गया . चाचा को मेरा पिता समझ बैठा था. उसे जब मेरा असली परिचय प्राप्त हुआ तो एक ही झटके में उसकी आशिकी उतर गयी थी . वह गुस्साए हुए मेरे घर आया , मुझे देखते ही ज़हर उगलने लगा .
‘’ झूठी ! तो यह है तुम्हारा घर . मुझे दो सप्ताह से लटकाए रखा . तुम्हारे कारण मेरी शादी टूट गयी .’’
‘’ आप क्या कह रहे हैं जरा खुलकर कहिये .’’ जबकि मैं सब समझ गयी थी .
पहले दिन जब उसने मुझे गाड़ी से उतारा था तो चाचा के मकान को देखकर उसकी आँखों में चमक आ गयी थी. उसने मेरे चाचा के मकान को ही मेरा मकान समझ लिया था . उसी के कारण अपनी शादी तोड़कर मुझसे नाता जोड़ना चाहा था. मैं चाहती तो उसे खरी खोटी सुना सकती थी . उसकी शिकायत कर सकती थी मगर मैं चुप रही इस कारण कि बात आगे न बढ़े . वह बेहद गुस्से में था. जहाँ तक हो सका वह अपना भड़ास निकालता रहा. जाते जाते बोला
‘’ अच्छा है भगवान ने मुझे तुम जैसी झूठी से बचा लिया .’’
वह चला गया और मैं इंसान की फ़ितरत के बारे में सोचती रह गयी .

-----कुंती

(सत्य घटना - मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 26, 2013 at 12:34am

कथ्य पर कुछ न कहूँगा लेकिन तथ्य ससंदर्भ है. एक अच्छी कहानी का बढिया ताना-बाना बुना गया है. कथानक थोड़ी और नाटकीयत हो सकता था.  लेकिन अंत ऐसा ही पवित्र रहे. 

आपके किस्सागोई पर आपको सादर बधाइयाँ व हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 25, 2013 at 10:41pm

आदरणीया सुन्दर रोमांटिक कहानी हुई मगर सच्चा प्यार तो कहीं था ही नहीं. फिरभी यही कहूंगा लड़का नादान था हैवान नहीं.

Comment by बसंत नेमा on April 25, 2013 at 12:55pm

आ0 कुंती जी आप के कथा पढ्ने के बाद तो अपनी रचना की दो पंत्ति ही कहुंगा । 

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

बहुत ही खुबसुरत कथा है ... बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 10:17am

आ0 कुन्ती मुखर्जी जी,   बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना।  बधाई स्वीकारे।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service