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कुंडलिया छंद 

 


नारी तू अबला नहीं, अपनी ताकत जान 

दोषी से कर सामना, पूरे कर अरमान। 
पूरे कर अरमान, तुझमे है शक्ति  ऐसी,
अपने को पहचान, शक्ति माँ दुर्गा जैसी।
मनुज करे यह भान, बने रणचंडी सबला,
कह लक्ष्मण कविराय, नहीं नारी तू अबला।
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला   
 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 11:05am

कुंडलियों सुन्दर और सार्थक बता रचना का मान बढाने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरनीय राजेश कुमारी जी |

 आपने ठीक समझा, लक्ष्मण में मैंने 4 मात्रा गिनी है (आधा क्ष होने से 1मात्रा मानते हुए), पुनः आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 10:44am

बहुत सुन्दर सार्थक कुंडलिया रची हैं आदरणीय लक्ष्मण जी ,एक लघु त्रुटी ---आपने रोले के तृतीय चरण में लक्ष्मण में शायद ४ मात्रा गिनी हैं जब की ५ होंगी इसी और इशारा है संदीप जी का  ,हार्दिक बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 10:39am

आपका हार्दिक आभार मोनिक शुक्ला जी, 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 10:25am

कुंडलिया पसंद कर उत्स्सहवर्धन हेतु हार्दिक आभार श्री विन्धेय्श्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी, कुशवाहा जी की 

रचना नारी नहीं है अबला रात को पढ़ी, प्रदीप जी की सोच एवं भावनाए मुझ से मिलती है यह प्रसन्नता 

की बात है |

Comment by manoj shukla on April 15, 2013 at 8:57am
बधाई स्वीकार करें.......आदर्णीय .....अति सुन्दर रचना
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 15, 2013 at 8:27am
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी! बहुत ही बढ़िया कुंडलिया छंद, जिसके लिये आपको कोटिश: बधाई। इस रचना में तथा आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी की रचना में मुझे भावसाम्य प्रतीत होता है।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 6:20pm

भाव पसंद कर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार | आपका सुझाव उचित है संदीप जी दोषी ज्यादा

 ठीक रहेगा |  त्रुटी की ओर ध्यान दिलाने के लिए साधुवाद |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 6:17pm

रचना पसंद कर समर्थन करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 6:15pm

रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार श्री केवल प्रसाद जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 5:37pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम

बहुत ही सुन्दर कलम चली है आपकी कमाल के भाव संप्रेषित हुए हैं जिसके लिए आपको ह्रदय से बधाई 

तत आपसे कुछ कहना चाहूँगा

दूषित को .........की जगह यदि दोषी हो जाए तो कैसा रहेगा

तत एक और बात 

अंतिम पद में रोले की तृतीय चरण में एक मात्र ज्यादा है

 

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