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अंतर्द्वंद्व // गणेश जी "बागी"

ठगती है,
बार बार,

अंतरात्मा,
आश्वासनों से,
ठीक हो जाएगा,
सब ठीक हो जाएगा,
एक अंतर्द्वंद्व,
सत्य असत्य,
दिल दिमाग़ के मध्य,
नही डिगेगा,
कभी नही डिगेगा,
चलते जाना है,
सत्य के मार्ग पर,
जो घटित होना है,
हो जाय,
कौन अमर यहाँ,
कोई नही,
कोई भी तो नही,
फिर डर कैसा,
उस अहंकार से,
जो क्षण भंगुर है,
चल हट !
चलने दे,
कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख
डर के आगे,
जीत है |

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : ईलाज / गणेश जी बागी

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Comment

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Comment by vijayashree on April 14, 2013 at 1:17pm

कौन अमर यहाँ,
कोई नही,
कोई भी तो नही,
फिर डर कैसा,
उस अहंकार से,
जो क्षण भंगुर है, 
चल हट ! 
चलने दे,
कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख
डर के आगे,

जीत है |

 

ह्रदयस्पर्शी रचना ...सत्य से सभी अवगत है फिर भी ये मन का डर रोकता है

 

बधाई

 

विजयाश्री

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2013 at 1:04pm

आदरणीया वंदना जी, मेरी पिछली टिप्पणी को देखें, मैंने त्रुटि निराकरण में सहयोग हेतु आभार व्यक्त किया है और रचनाओं के गुण दोष पर चर्चा तो ओ बी ओ की परिपाटी है तथा यही परिपाटी हमें विशेष भी बनाती है, फिर क्षमा मांगने जैसी कोई बात ही नहीं, आप सभी से निवेदन है कि खुल के चर्चा करें, कमियों को बताये ताकि "सीखने सिखाने" में सहयोग हो सके । 

आदरणीया अन्यथा लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता । मैं पुनः आभार व्यक्त करता हूँ । 

Comment by Vindu Babu on April 14, 2013 at 12:37pm
आदरणीय क्षमा करें जो मेरी जिज्ञासा त्रुटि को इंगित कर रही है। श्रीमान् जब शब्दकोष में दिया है तो सकता है इसका कोई तर्क हो और आप सही हों मैं तो व्याकरण में शून्य हूं।
आपकी रचना ने हृदयातल को छुआ इसलिए अपनेपन से टिप्पणी की थी कृपया अन्यथा न लें।
सादर नमन्!
-वन्दना
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 11:55am

चल हट !  चलने दे,
कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख, डर के आगे जीत है | - अंतर्मन में द्वन्द में अंततः  डर  का भूत भागा और जीत हुई -

आत्म विश्वास के संबल की | आत्म विश्वास से सरोबार आपकी कलम से  सुन्दर सन्देश देती सापेक्ष

रचना के लिए बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2013 at 10:56am

ताउम्र, होने या न होने सही या गलत चाहिए अथवा नहीं का ये अन्तर्द्वन्द मानव के साथ परछाई की तरह चलता है डर  के आगे जीत है जिसने इस मर्म को समझा वो तर  गया  वरना मर गया मन मंथन से निकले प्रेरित करते भाव रचना को बहुमूल्य बना रहे हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी ।   


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2013 at 10:41am

आदरणीया वंदना जी, सादर प्रणाम, मैं शब्दकोष के कारण भ्रमित हो गया, उसमे अंतरात्मा को पुलिंग बता दिया है जबकि आत्मा को स्त्रीलिंग, और इसी भ्रमवश गलती हो गई, आप सही कह रही हैं "ठगती है" ही होना चाहिए, मैं सुधार करता हूँ । 

त्रुटि निराकरण में सहयोग और रचना को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार ।  

Comment by coontee mukerji on April 14, 2013 at 10:04am

आदरणीय बागी , आपकी सुंदर रचना हर किसी के मन  का अंतर्द्वंद है जो जीवन के सत्य मार्ग पर चलने के लिये हिचकिचा रहे हों. यह

रचना अच्छा प्रेरणा स्रोत भी है .हार्दिक बधाई स्वीकर करें . सादर कुंती .

Comment by Vindu Babu on April 14, 2013 at 10:02am
आदरणीय बागी जी सादर अभिवादन स्वीकारें।
महोदय आपकी रचना अद्भुद है।
आपने शुआत में लिखा 'ठगता है' यदि आत्मा के लिए है तो 'ठगती है' न प्रयोग करने का कारण जानने की सादर जिज्ञासु हूं अथवा ये 'द्वन्द' के लिए है!
प्रतीक्षा में
सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 11:28pm

आदरणीय अशोक कत्याल जी, हृदय से आभार स्वीकार करें |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 11:26pm

प्रिय बृजेश जी, रचना आपको अच्छी लगी इसके लिए आभार, अन्यथा की बात क्या है मित्र, दो शब्दों मे टंकण त्रुटि थी जिन्हे ठीक कर लिया गया है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद | 

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