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वो नन्ही नन्ही सी गोल मटोल,

आंखे इधर उधर निहारती ,

कुछ तलाशती सी लगती ,

न पा सकने की स्थिति,

समझ न पाती .............

 

कुछ कुछ कहना चाहती ,

पर कह न पाती,

शून्य मे निहारती सी लगती,

न कह पा सकने की स्थिति,

समझ न पाती............

 

खुशी से टिमटिमाती,

दुःख से टपकती,

डर से सहमती वो,

भाषा को पढ़ पाने की स्थिति,

समझ न पाती ................   

 

प्यार दुलार अच्छे से,

पढ़ जाती और ,

सब कुछ वह मौन आँखों से ,

कह लेने की स्थिति ,

समझ न पाती...............

 

वो दादी की गाय की,

छोटी सी बछिया .....................

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on May 20, 2013 at 8:08pm

सभी सुधी जनो को मेरा हार्दिक धन्यवाद ।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 9:23pm

इस सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें .. आदरणीया

Comment by Yogi Saraswat on April 13, 2013 at 10:45am
सुन्दर और सरल शब्दों में आपने गहरे भाव लिखे हैं आदरणीया अन्नपूर्ण जी
कुछ कुछ कहना चाहती ,

पर कह न पाती,

शून्य मे निहारती सी लगती,

न कह पा सकने की स्थिति,

समझ न पाती............



खुशी से टिमटिमाती,

दुःख से टपकती,

डर से सहमती वो,

भाषा को पढ़ पाने की स्थिति,

समझ न पाती ................
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 12, 2013 at 6:38pm

सुन्दर कविता हेतु बधाई स्वीकारें 

आदरणीया अन्नपूर्ण जी 

सादर 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 11, 2013 at 7:09pm
बहुत ही सुन्दर कविता है अन्नपूर्णा जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 11, 2013 at 6:04pm

गाय की बछिया के लिए समर्पित इस संवेदनात्मक दृष्टी और उसकी अभिव्यक्ति के लिए हृदय से बधाई आ० अन्नपूर्णा जी 

Comment by annapurna bajpai on April 11, 2013 at 4:36pm

आप सबको हार्दिक धन्यवाद, एवं नवरात्रि की बधाई ।

Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2013 at 3:43pm

प्यार दुलार अच्छे से,

पढ़ जाती और ,

सब कुछ वह मौन आँखों से ,

कह लेने की स्थिति ,

समझ न पाती...............

 

वो दादी की गाय की,

छोटी सी बछिया .................बड़ी प्यारी रचना आदरणीया   !हार्दिक बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2013 at 3:43pm

प्यार दुलार अच्छे से,

पढ़ जाती और ,

सब कुछ वह मौन आँखों से ,

कह लेने की स्थिति ,

समझ न पाती...............

 

वो दादी की गाय की,

छोटी सी बछिया .................बड़ी प्यारी रचना आदरणीया   !हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 1:04pm

बहुत ही सुंदर रचना आदरनेया
दादी की गाय की बछिया
बछिया तो चंचल हिरण सी होती है उस अवस्था मे
सुकुमारी से
गाँव की बरबस याद आ गयी
आजकल की पीढ़ी को बछिया देर मे समझ आएगा
बहुत बहुत बधाई हो आपको

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