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आधुनिक नई धारा हिन्दी साहित्य में कई नई विधाएं अपने साथ लेकर आयी। कई तरह के अभिनव प्रयोग हुए। इन्हीं विधाओं में से एक विधा है गद्य काव्य। इस विधा में त्रिलोचन शास्त्री ने बहुत काम किया।
मैंने एक गद्य काव्य लिखने का प्रयास किया है। मैं नहीं जानता कि मैं कितना सफल या असफल हुआ हूं। अपना यह प्रयास इस मंच पर इस आशय से प्रस्तुत कर रहा हूं कि इसके माध्यम से इस विधा पर कुछ चर्चा हो सके और मेरे साथ साथ सबको इस विधा के बारे में जानने का एक अवसर प्राप्त हो सके।
आशा है सुधी जन मुझे मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
सादर!

गद्य काव्य/ अवसाद

इस गर्मी की दुपहरिया में मैं निश्चल शान्त बैठा था। कमरे के बाहर जैसे आग बरस रही हो। चमड़ी को छीलती सी गरम हवा और अंगारों सी छूती सूरज की किरन। चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। सब घर के भीतर दुबके थे, मैं भी।
कमरा भी निःशब्द था, मैं भी। बाहर भीतर बस खामोशी छायी थी। सब कुछ शान्त। धीरे धीरे न जाने क्यों मेरे मन के भीतर एक सांझ सी उतरने लगी। अवसाद सा भरने लगा। जाने कौन सा दुख मुझमें पैठ बनाने लगा।
महसूस कर रहा हूं कि मेरा अपना दुख मेरे अंदर भर रहा है। मेरे असफल संघर्ष व अतृप्ति की व्यथायें मेरे भीतर लौट लौटकर प्रवेश कर रहे हैं। इस कमरे की सीलन, जर्जर दीवार की झड़ती पपड़ियां, फर्श के गड्ढे, चिटकी छत की दरारें, सब मुझे जकड़ रही थीं। इस कमरे के अंदर बाहर का सारा दर्द मुझे भेदकर मेरे अंदर समा रहा था।
मैं भर गया हूं अवसाद से। फिर भी शायद मेरे भीतर बहुत जगह शेष है इसीलिए बचपन से अब तक के सारे दुख, पत्नी का कष्ट, बच्चे की तकलीफ, रिश्तों की कड़ुवाहट, नातों की टूटती डोर, सब फिर फिर कर मेरे पास आ रहे हैं। सब मुझे घेरकर बांध लेने को आतुर हैं। दरवाजे से टकराकर लौटती हवा की वेदना, धूप की कमरे में प्रवेश न कर पाने की पीड़ा, सब मुझे दिख रही है।
सब चर-अचर, भोगा-अभोगा, भूत-भविष्य दुख बनकर मुझमें समाहित हो रहे हैं और मैं चुपचाप, निश्चल बैठा हूं मूकदर्शक बनकर। प्रतीक्षारत हूं कि शेष सारे दुख आकर इस कदर मेरे भीतर समा जाएं कि अंततः यह घड़ा फूट जाए और सब कुछ बरसात बनकर बह निकले। इस अतृप्त धरा को तृप्त कर दे।
- बृजेश नीरज

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Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2013 at 9:21am

आदरणीय सौरभ जी,
आपकी टिप्पणी मेरे लिए लेखन की सार्थकता का मापदण्ड है। आपका मार्गदर्शन मेरे लिए मील का पत्थर होता है। आपका आभार!
मेरा एक अनुरोध है कि नई कविता की विधाओं पर यहां चर्चा आयोजित होनी चाहिए जिससे कि छंद काव्य की तरह इस विधा में भी प्रकाशित रचनाओं का स्तर और ऊंचा उठ सके।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 2:40am

विलम्ब से रचना तक आने के लिए क्षमा. मैं दो सप्ताह से दौरे पर होने के कारण ओबीओ पर प्रस्तुत हुई सभी रचनाओं पर एक-एक कर आ पा रहा हूँ. 

भाई बृजेशजी, आपकी इस रचना को मैं हृदय से पढ़ गया. ऐसे कथ्य कई रचनाकार दैनिन्दिनी-रचना का अगला प्रारूप मानते हैं और रचते हैं जैसे कि अज्ञेय. आपने त्रिलोचन का नाम साझा किया है.

जैसाकि मैं समझ पा रहा हूँ, मैं इस विधा को आकाशी ऊँचाइयों पर जाते देखा है बच्चन की आत्मकथाओं के चारों भागों में. बच्चन ने आत्मकथा विधा को एक अलहदा आयाम ही नहीं दिया बल्कि आत्मकथात्मकता को उपन्यास का जामा दे कर गद्य साहित्य में क्रांतिकारी एवं अभिनव प्रयोग किया है.

आपकी प्रस्तुत रचना भाव-शब्दों का अनूठा संचयन है. हार्दिक धाई स्वीकार करें, भाईजी.

Comment by बृजेश नीरज on April 12, 2013 at 11:26pm

आदरणीय रक्ताले साहब मुझे भी ऐसा ही भान हो रहा था कि शायद इस विधा पर यहां चर्चा नहीं हुई है इसीलिए अपने अभी तक अध्ययन के आधार पर इस विधा की एक रचना पर काम करने का प्रयास किया तथा यहां पोस्ट की ताकि इसके गुण दोष से मैं अवगत हो सकूं तथा विधा पर भी मुझे कुछ मार्गदर्शन प्राप्त हो सके परन्तु शायद सुधी जनों की व्यस्तता के कारण मुझे अद्यतन यथोचित मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हो सका या फिर शायद मैं अपने प्रयास में सफल नहीं रहा।
आपने जो हिम्मत बंधाई है मुझे उसके लिए आपका आभार!

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 11:15pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी सादर, शायद मंच पर इस तरह का गद्य काव्य पढ़ने का प्रथम ही अवसर है. जब जानता नहीं तो कुछ कह भी नहीं सकता. हाँ मगर प्रवाह पूर्ण सुन्दर रचना है. इसकी आप अवश्य बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on April 10, 2013 at 8:21pm

आदरणीया मलिक जी आपका बहुत आभार!

Comment by Parveen Malik on April 10, 2013 at 8:16pm

बृजेश कुमार सिंह जी सादर ,

मन की व्यथा को बहुत खूब व्यक्त किया है .. सुन्दर चित्रण .... बधाई !

Comment by बृजेश नीरज on April 10, 2013 at 6:03pm

कुन्ती जी आपका आभार!

Comment by coontee mukerji on April 10, 2013 at 12:16pm

मै क्या बताऊँ आपको ये मनोव्यथा जो आपने व्यक्त की है यह हर पाठक के मन में उतर जाएगी . बहुत सफ़ल चित्रण है.नीरज जी  .

Comment by बृजेश नीरज on April 9, 2013 at 11:55pm

आपको बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2013 at 11:51pm

नीरज जी बहुत सुन्दर ...अच्छे भावों और  शब्दों को समेटे  अच्छा लेख ..जय श्री राधे आभार प्रोत्साहन हेतु 

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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