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प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन

खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन

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Comment

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Comment by aleem azmi on December 9, 2010 at 5:54pm
bahut umda jiti tareef karu kam hai
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:52pm
wese प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन hai..sach hai ye
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:50pm
dil choone wali kavita !!
Comment by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 1:18pm
वाह श्रद्धा जी बहुत खूब ! यूं ही लिखते रहिये |कमेन्ट के लिए लिंक का इस्तेमाल कर सकती हैं |आपकी अगली रचनाओं की प्रतीक्षा है |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 20, 2010 at 5:10pm
श्रद्धा जी ‘बागी’ भाई ने मौका देखकर चौका मार दिया है। अब मेरे लिखने के लिए कुछ नहीं बचा। चलिए कोई नहीं।
Comment by Shrddha on November 20, 2010 at 11:56am
Main abhi nayi hun to samjhne ki koshish mein hun .. koi mujhe samjhaaye ki yahan comment ka reply kaise karun ? photo kaise judun

Dharmendra ji guru banegen kya ?
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 20, 2010 at 12:33am
जहाँ जा रहा हूँ
तुम्हें पा रहा हूँ

ये मैं सो रहा हूँ
या जग सा रहा हूँ

तुम्हें पढ़ रहा या
शहद खा रहा हूँ

अमर लेखनी की
ग़ज़ल गा रहा हूँ

हुँ इतने नशे में
नशा खा रहा हूँ
Comment by Dr. Umeshwar Shrivastava on November 19, 2010 at 9:15pm
वाह श्रद्धा जी ! देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर!
Comment by Mazhar Masood on November 19, 2010 at 9:09pm
बहुत अछी कोशिश है आप की ,उम्मीद है आगे भी आप हम लोगों को अपने कलाम से नवाजें गी
Comment by Hilal Badayuni on November 19, 2010 at 7:21pm
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
bahhut khoob shraddha ji

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