For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी गलती को प्रिये! मत समझो तुम भार।
दूध फटा तो क्या हुआ, कर पनीर तैयार॥

जीवन का उद्देश्य क्या, मिला हमें क्यों जन्म।
परमपिता को याद कर, करें निरन्तर कर्म॥

घृणा और पर डाह से, हो खुशियों का नाश।
प्रेम और सद्भाव से, मन में भरे प्रकाश॥

प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।
जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥

दृश्य बदलते हैं प्रिये! बदलो अपनी दृष्टि।
निज नजरों के दोष से, दोषी दिखती सृष्टि॥

मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी प्रतिदिन भूलता, उनका हर अहसान॥

मेरी चिंता है जिसे, मुझको रखता याद।
वह ईश्वर कैसे मुझे, दे सकता अवसाद॥

Views: 757

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:10am

मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी प्रतिदिन भूलता, उनका हर अहसान॥

भगवान मानव की गलतियों भूला है, और मानव भवान के किये को ही भूलता दीखता है.  दोनों भूल एक कैसे हुई ???  यदि एक नहीं है तो फिर उपरोक्त दोहे के दूसरे विषम में ’भी’ क्यों आया है ?मैं भी प्रतिदिन भूलता    को क्यों मैं प्रतिदिन भूलता  किया जा सकता है न !?

एक बात :  पुनः निवेदन करूँगा कि आप रचना पोस्ट् करने की जल्दी में न रहें. रचना को कुछ दिन अपने पास रहने दें, सुधार होता रहेगा. जब आश्वस्त हो जायँ कि अब सुधार लगभग संभव नहीं तो ही रचनाएँ पोस्ट करें. 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2013 at 6:37pm
भाई रामशिरोमणि जी! आपको दोहे पसंद आये रचना- कर्म सार्थक हुआ।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2013 at 6:36pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी! आपसे आशीष पाकर मैं कृत्कृत्य हूँ।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2013 at 6:34pm
योगी सारस्वत जी! दोहों को पसंद करने क लिये हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2013 at 6:33pm
आदरणीया प्राची दीदी!दोहों की सराहना के लिये हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2013 at 6:32pm
आदरणीय वेदिका जी!दोहा पसंद करने के लिये हार्दिक आभार।
Comment by ram shiromani pathak on March 14, 2013 at 5:13pm

प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।
जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥

मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी जाता भूल हूँ, उनका हर अहसान॥

सुन्दर दोहो के लिए बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 2:21pm

दोहे मन को भाये, प्रेम और विश्वास का भाव लिए सुन्दर दोहो के लिए बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी  

Comment by Yogi Saraswat on March 14, 2013 at 12:11pm

प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।
जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥

दृश्य बदलते हैं प्रिये! बदलो अपनी दृष्टि।
निज

सुन्दर दोहे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 14, 2013 at 10:42am

बहुत सुन्दर भावमय दोहावली प्रिय विन्ध्येश्वरी जी 

बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service