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ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना

एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें

उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |

गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |

आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,
जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |

मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |

अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |

मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित

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Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 28, 2013 at 11:59pm

हमेशा की तरह लाजवाब गजल ।

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |

गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |

वाह वाह !!! क्या शानदार बात कही है ।

Comment by वीनस केसरी on February 28, 2013 at 11:54pm

आदरणीया मंज़री जी
संजीव सलिल जी के लिए लिखा कमेन्ट भूल वश आपने मेरे ब्लॉग पर पोस्ट कर दिया है ...

Comment by mrs manjari pandey on February 28, 2013 at 11:06pm

आदरणीय संजीव सलिल जी " मुक्तिका " के लिए मुक्त कंठ से बधाई।

                        

Comment by वीनस केसरी on February 28, 2013 at 1:42am

विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी आपका ह्रदय तल से आभार

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 27, 2013 at 10:55pm
आदरणीय वीनस सर जी आपने सच और झूठ दोनों को क्या आइना दिखाया है।शब्द-शब्द हृदय से बात करता प्रतीत होता है।
Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 10:47pm

संदीप भाई दिल से निकली दाद दिल तक पहुँची है

Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 10:46pm

नादिर साहिब
अशआर को पसंद करने के लिए धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 10:44pm

राजेश जी आपकी मुहब्बतों के लिए तहे दिल से शुक्रिया ...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 27, 2013 at 5:05pm
आदरणीय वीनस सर जी सादर प्रणाम
क्या ही खूबसूरत समा बाँधा है साहब इस ग़ज़ल ने
इक इक शेर शानदार है .................दाद पे दाद क़ुबूल कीजिये सादर
Comment by नादिर ख़ान on February 27, 2013 at 4:32pm

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना 

अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना 

क्या खूब कहा आदरणीय वीनस जी .....

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