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ढलकते आँसुओ को सहेजना चाहते है

ढलकते आँसू  (गीत)
लक्ष्मण लडीवाला
आँसू चाहे गम के हो, ख़ुशी के हो कपोलों को भिगोते है 
देखने वाले चाहेजो समझे, ख़ुशी या गम मगर रिझाते है ।
 
आँसू जब ढलकते है, ग़मों को कम करते राहत दिलाते है, 
ढलकते आँसू बेहद ख़ुशी से पड़ते दिल के दौरे से बचाते है।
 
गर बाहर दुनिया में आता बच्चा न रोये, लोग घबराते है,
थपेड थपेड कर किसी तरह बच्चे को आखिर रुलाते है  ।
 
संसार से आखिर में विदा होते भलेही वह हंसता जाता है,
उसकी अर्थी को कन्धा देते सब लोग आँसू बहाते जाते है।
 
मनुज तो क्या अथाह प्रेम में प्रभु भी आँसू  रोक नहीं पाते,
मित्र सुदामा की दीनता पर स्नेह के आँसू हमें यही बताते है। 
 
प्यार में आंसुओ की कीमत सच्चे प्रेम करने वाले ही जानते है,
मोती से ढलकते आँसुओ को वे सहेज कर रखना चाहते है । 
 
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

 

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Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 9:05pm

    बहुत बढ़िया, आँसू बहुत कीमती होते हैं ,जब तलक आँखों में है तो लाख का जमीं पर गिर पड़े तो ख़ाक का ,अच्छी रचना बधाई आपको  

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:19pm

आपका सतत प्रयास रहना आननदित करता है सर जी ................बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:48pm

..बहुत खूब सर..बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 6:32pm

हार्दिक आभार आरती शर्मा जी 

Comment by Aarti Sharma on February 2, 2013 at 5:53pm

ढलकते आँसू बेहद ख़ुशी से पड़ते दिल के दौरे से बचाते है।....बहुत खूब सर..बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 3:35pm

रचना पसंद कर सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका भाई श्री विजय निकोरे जी 

Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 2:46pm

आदरणीए लक्ष्मण प्रसाद जी,

संसार से आखिर में विदा होते भलेही वह हंसता जाता है,
उसकी अर्थी को कन्धा देते सब लोग आँसू बहाते जाते है।

आपकी यह कविता बहुत ही भाई। आपको शत-शत बधाई!

विजय निकोर

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