For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ना जाने कब तुमने चुपके से 

ये इश्क के बीज रोपित किये 

 मेरे सुकोमल ह्रदय में 

की मैं बांवरी हो गई 

तुम्हारी चाह  में ,सांस लेने लगी 

उस तिलस्मी फिजाँ  में 

रंग बिरंगे इन्द्रधनुष आकर लेने लगे 

मेरी रग रग  में  

ऐ  मेरे शिखर तुम्हारी  गगन चुम्बी चोटी  

भी अब सूक्ष्म और सुलभ लगने लगी 

मुहब्बत के नशे में चूर 

इश्क के जूनून में जंगली 

घास बन  ,फूलों के संग संग तुम्हारे 

बदन पर रेंगती हुई

पंहुच गई तुम्हारे शीर्ष तक 

और आलिंगन बद्ध कर लिया तुम्हे 

तुमने एक बार भी नहीं पूछा 

की मेरा मजहब क्या है 

जैसे की तुम सब पहले से ही जानते थे 

 हर युग  में हर राह में 

हर रूप में तुम मुझे मिलते रहे 

वो तुम ही थे जब 

निर्विरोध ,निःस्वार्थ ,द्रुत गति 

से बहती हुई ,रास्ते  में नुकीले 

पत्थरों कंटीली झाड़ियों से 

जख्मी होती हुई तुम्हारी गोद में समा गई मैं 

और ख़ुशी ख़ुशी विलीन हो गई 

ये मेरे इश्क की इन्तहा ही तो थी 

तुमने कब पूछा मेरा मजहब 

उस वक़्त भी नहीं जब मैं 

सारी रात कतरा कतरा जली 

तुम्हारी चाहत में और तुम मेरे 

पहलु में जान दे बैठे और

तुम्हारी मौत का इल्जाम मेरे सर लगा

अब तक इश्क का वो अंकुर 

सघन दरख़्त बन चुका था 

वो वक़्त हम कैसे भूल सकते हैं 

जब मैं तुम्हारे ही प्यार में बावरी 

हो बन बन में जोगन बन कर भटकती थी 

वो भी तो मेरा जूनून ही था 

तुम्हे पाने के लिए गरल भी पिया 

पर तुम सब जानते थे 

आज भी जानते हो की 

इश्क ही मेरा मजहब है 

सब खेल तुमने ही तो रचाया है 

तुमने ही तो इश्क का बीज 

इस माटी  के बुत  में अंकुरित किया 

सदियों से हम यूँ ही रूप बदल बदल कर 

इस दुनिया में इश्क और मुहब्बत 

की खुशबू  फैलाते चले आ रहे हैं 

ताकि ये दुनिया प्यार की नीव पर टिकी रहे 

द्वेष और वैमनस्य से बहुत दूर 

एक खूब सूरत दुनिया

जो किसी मजहब ,

रंग रूप की मोहताज ना हो 

पर आज क्यूँ तुमने 

उस इश्क के फूल को  

केक्टस बनने को  मजबूर कर दिया

देखो ना कितने काँटे 

उग आये हैं मेरे बदन में  

,तुमने इक बार भी नहीं सोचा 

इस माटी  में  अब केक्टस ही तो उगेंगे !!! 

******************************************

Views: 442

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 26, 2013 at 9:43pm

हार्दिक आभार गणेश जी आप सही कह रहे हैं और उन प्रश्नों का उत्तर भी मिलना असंभव लगता है 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 26, 2013 at 2:50pm

//

एक खूब सूरत दुनिया

जो किसी मजहब ,

रंग रूप की मोहताज ना हो 

पर आज क्यूँ तुमने 

उस इश्क के फूल को  

केक्टस बनने को  मजबूर कर दिया//

अच्छी रचना, आदरणीया राजेश जी , कुछ प्रश्न अपने पीछे अनेको प्रश्न छोड़ जाते हैं , बधाई स्वीकार करें आदरणीया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2013 at 7:57pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका 

Comment by ram shiromani pathak on January 25, 2013 at 7:46pm


इस संवेदनशील रचना के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2013 at 2:40pm

योगी सारस्वत जी रचना आपके दिल तक पंहुच सकी हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2013 at 2:38pm

प्रिय प्राची रचना के मर्म ने आपके दिल तक राह बनाई ,हृदय से आभारी हूँ ,नारी के अस्तित्व में कांटे बोकर किस कोमलता मृदुता की अपेक्षा करेंगे लोग कांटे ही बोयेंगे कांटे ही काटेंगे ,भगवान् ने जिन दो बुतों में मुहब्बत के बीज बोये थे वो तो ख़त्म से ही हो गए हैं यही सब कहने का प्रयास किया है रचना में 

Comment by Yogi Saraswat on January 25, 2013 at 2:38pm

ताकि ये दुनिया प्यार की नीव पर टिकी रहे 

द्वेष और वैमनस्य से बहुत दूर 

एक खूब सूरत दुनिया

जो किसी मजहब ,

रंग रूप की मोहताज ना हो 

पर आज क्यूँ तुमने 

उस इश्क के फूल को  

केक्टस बनने को  मजबूर कर दिया

बहुत सुन्दर भाव इस रचना के आदरणीय राजेश कुमारी जी.

हार्दिक बधाई इस संवेदनशील रचना पर. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2013 at 2:33pm

आदरणीय विजय जी नारी का जीवन भी सागर की लहरों के सामान गिरता उछलता रहा है इतिहास साक्षी है इस बात का पर आज के वक़्त में तो उसका अस्तित्व ही खतरे में है जिससे दुनिया बनी है हार्दिक आभार आपका ये रचना आपके दिल को छू सकी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 25, 2013 at 2:10pm

अंतर भावों का निर्बाध प्रवाह और अंत में एक सवाल 

तुमने इक बार भी नहीं सोचा 

इस माटी  में  अब केक्टस ही तो उगेंगे ???????? वाह!

बहुत सुन्दर भाव इस रचना के आदरणीय राजेश कुमारी जी.

हार्दिक बधाई इस संवेदनशील रचना पर. सादर.

Comment by vijay nikore on January 25, 2013 at 1:41pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

आपकी यह संवेदनशील रचना मन को छू गई...

इसे पढ़ते हुए सागर में लहर के समान मन कभी

उछला, मन कभी डूबा। बधाई।

विजय निकोर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service