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हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये....

हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये

या हमें अब डूब मरना चाहिये

 

देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक

देश को क्यों और धरना चाहिये  

 

दर्द ही है जख्म की संवेदना 

क्यों भला इससे उभरना चाहिये

 

रों रही है माँ बहन औ बेटियां

जिन्दगी इनकी सवरना चाहिये


आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ

यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये 
~अमितेष 

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Comment

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Comment by अमि तेष on January 3, 2013 at 2:47pm

शुक्रिया अनन्त जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2013 at 12:27pm

मित्र अमितेष सुन्दर जोशीली ग़ज़ल कही है, आपकी सोंच सच हो यही मैं भी चाहता हूँ. बधाई स्वीकारें

Comment by अमि तेष on January 2, 2013 at 10:59pm

शुक्रिया ............सीमा जी 

Comment by seema agrawal on January 2, 2013 at 9:40pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है अमि तेष जी 

आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ

यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये...बिलकुल अब करने का समय ही है |

दर्द ही है जख्म की संवेदना 

क्यों भला इससे उभरना चाहिये...मेरे विचार से यहाँ उबरना (मुक्ति पाना,किसी स्थिति  से बाहर आना  ) शब्द होना चाहिए था ...क्यों की आपने इस शब्द से पहले इससे  शब्द का प्रयोग किया है इसलिए यह मेरा अनुमान है 

Comment by अमि तेष on January 2, 2013 at 6:01pm

shukriya Prachi jee........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 2, 2013 at 5:07pm

आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ

यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये ...बहुत बढ़िया भाव 

उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by अमि तेष on January 2, 2013 at 4:55pm

shukariya Vijay jee ......

Comment by vijay nikore on January 2, 2013 at 4:24pm

भाव अच्छे लगे। बधाई।

विजय निकोर

Comment by अमि तेष on January 2, 2013 at 2:05pm

आदरणीय सौरभ जी ........शुक्रिया.......धरना का अर्थ यहाँ picketing (Picketing is a form of protest in which people  congregate outside a place of work or location where an event is taking place. Often, this is done in an attempt to dissuade others from going in, but it can also be done to draw public attention to a cause. Picketers normally endeavor to be non-violent.) से है .........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2013 at 9:59am

आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ
यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये

वाह ! बहुत बढिया शेर हुआ है.  आपके ग़ज़ल प्रयास को बधाइयाँ.

देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक
देश को क्यों और धरना चाहिये ..

इस शेर के मिसरा-सानी का क्या अर्थ हुआ भाईजी ? धरना  शब्द का प्रयोग कुछ स्पष्ट नहीं हुआ.

बहरहाल, इस ग़ज़ल पर दाद कुबूल कीजिये.

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