For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नदी चली पाथर से,बही मिली सागर से,

पवित्र सरिता जल संग निस्तार लिए/

प्रदूषित अकुलायी,बहती चली आयी,

अधजली मानव की लाशों का भार लिए/

 

बसे नगर औ बस्ती,ये थी उसकी हस्ती,

बसे कृपण मानव, मनोविकार लिए/

मनु ही न देखे भाले,मोड दिए गंदे नाले,

बही चली सरिता सब ही स्वीकार लिए/

 

लगे कल कारखाने,खुले कई मयखाने,

 मानव मदमस्त है,मन हुंकार लिए/

चली  ठिठकी नदिया,गाद भरी सदियाँ,

सुस्त पड़ी बही पर,मन चीत्कार लिए/

 

हुआ क्या री  तुझे  गंगा,रंग हुआ बदरंगा,

पूछे सागर चक्षु में,अश्रु की धार लिए/

कहे क्या दुःख हरिता,सागर घुली सरिता,

मानव कि गलती का,मन में भार लिए/

Views: 401

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 28, 2012 at 7:17pm

आदरणीय डॉ. अजय खरे जी एवं आदरेया डॉ. प्राची जी आप दोनों का हार्दिक आभार.

Comment by Dr.Ajay Khare on December 28, 2012 at 12:17pm

paryavarniya rachana sunder he aap badhai ke hakdaar he 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 28, 2012 at 10:33am

गंगा के आंसुओं को शब्द देने के लिए साधुवाद आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी ,

लोग जन हित याचिकाएं दायर करते रहें, सरकार तो गंगा एक्शन प्लान पर करोड़ों रूपया खर्च रही है... पर गंगा की स्थिति फिर भी दयनीय ही है ....क्या हो रहा है, सब जानते हैं... पर कैसे जीवन दायिनी माँ गंगा अपनी ज़िंदगी को पुनः पाए, ये एक बड़ा सवाल है.

पूछे सागर चक्षु में,अश्रु की धार लिए/

कहे क्या दुःख हरिता,सागर घुली सरिता,

मानव कि गलती का,मन में भार लिए/................हार्दिक बधाई इस वेदना को महसूस कर शब्द देने के लिए .

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 28, 2012 at 8:37am

आदरणीय प्रदीप जी,आद. सौरभ जी और आदरेया महिमा श्री जी आप सभी का हार्दिक आभार आपने देश की सबसे पावन नदी गंगा पर लिखी मेरी रचना के भाव को महसूस किया. आद. महिमा जी सच है जब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं होगी गंगा के स्वरुप को पुनः पाना आसान नही है. आद. सौरभ जी की बात से मै पुरी तरह सहमत हूँ कि हम पहले और आज भी नदियों को माँ सद्रश्य मानते हैं मगर जिस तरह आज कई घरों में माताएं व्याकुल है उसी तरह नदियाँ भी हमारी करनी से गंभीर अवस्था में हैं. पुनः आप सभी का हार्दिक आभार.

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2012 at 3:36pm

हुआ तुझे क्या री गंगा,हुआ रंग बदरंगा,

पूछे सागर सरि से,अश्रु की धार लिए/

कहे क्या दुःख हरिता,खामोश बही सरिता,

मानव कि गलती का,मन में भार लिए/...
आदरणीय अशोक सर , सोचने को विवश करने वाली रचना .. वाकई में क्या थी गंगा और क्या होगई .. क्षतिपूर्ति असम्भव है / बहुत -2 बधाई आपको संज्ञान में लाती सुंदर रचना के लिए /


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2012 at 3:11pm

आदरणीय अशोक भाई, आपकी रचना की तासीर कुछ अधिक ही हम प्रयागवासियों तक पहुँच रही है. इस बहुत ही अर्थपूर्ण, सामयिक और प्रभावोत्पादक कविता के लिए आपको मैं बार-बार धन्यवाद कह रहा हूँ.

क्या कहूँ, हम अच्छे थे जब अशिक्षित थे, गंगा ही नहीं सारी नदियाँ माँ सदृश थीं. तथाकथित शिक्षित क्या होगये, नदियों को बहता पानी समझ अपने वज़ूद से ही उलझ पड़े हैं. समझ में नहीं आता, इस हो रहे सर्वनाश का ज्ञान होते हुए भी इसके प्रति निर्लिप्तता किस रूप में साझा हो !? आपकी इस कविता के लिए आपका सादर धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 2:54pm

सरिता की व्यथा निकली उर से मन भार लिए 

बह चले अश्रु झर झर यों मन सुन्दर उदगार लिए 

बधाई, 

आदरणीय अशोक जी, 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service