For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

ठिठुरती शीत में सिमटी हुई सी रात है
अकेलेपन का गम ये इश्क की सौगात है
विरह ये लग रहा जैसे हृदय आघात है
वक़्त के सामने मेरी भी क्या औकात है

प्रिये तडपाओ न अब और जरा प्यार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

सुबह है शबनमी प्यारी गुलाबी शाम है
हवा के हाथ में कोई तिलिस्मी जाम है
युगल स्वक्छंद फिरते दे रहे पयाम हैं
इश्क करते रहो ये आशिकों का काम है

प्रिये मेरे गले को बाहों का तुम हार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

सूर्य धूमिल हुआ है गुनगुनाती धूप है
पूर्ण योवन से भरा प्रकृति का ये रूप है
खिले हैं मन में आज प्रेम के कुछ पुष्प फिर
नहीं उपमा कोई रंग ये अनूप है

प्रिये दिल के खालीपन को आज मार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

तुम्हे न खो दूं कभी दिल में एक आह है
सिर्फ और सिर्फ तुम्हे पाने की ही चाह है
कदम बढ़ा चुका हूँ इश्क के खातिर फिर मैं
एक मंजिल है मेरी और एक राह है

प्रिये दो लफ्ज बोल प्रेम का उपहार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

संदीप पटेल "दीप"

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 17, 2012 at 4:15pm

आदरणीय म्रदु जी , आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम
आपने रचना को पढ़ लेखन पर अपनी कीमती प्रतिक्रिया दी मन को एक सुखद अनुभूति हुई है]
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 17, 2012 at 4:14pm

आदरणीय गुरुदेव सादर प्रणाम

आपके द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया निश्चित तौर से मेरे लेखन में औषधि स्वरूप है
संभवतः लेखन में भटकाव आपको दिखा  होगा, उसकी दिशा बदली हुई लगी होगी
इसीलिए आपने मेरे भटकाव को रोकते हुए अपने मार्ग में प्रवाहित होने का
इशारा किया है
क्यूंकि लिखना केवल स्वयं के लिए नहीं अपितु सकल समाज के लिए होता है
और ये भी के यदि आप अच्छा लिख रहे हैं तो फिर कोशिश कीजिये और अच्छा करने की
रचनाओं का स्तर न गिरने पाए

गुरुदेव शायद मैं कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी कर रहा हूँ संभवतः अगले प्रयास
में आपको कम से कम त्रुटियाँ मिलेंगी
अपना स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर
और कुछ इसी तरह मार्गदर्शन करके कमजोर लेखन में भी अपनी औषधि तुल्य
प्रतिक्रिया दे कर मुझे धन्य करते रहें

सादर प्रणाम गुरदेव

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on December 16, 2012 at 10:24pm

गीत में भावाभियक्ति पाठक को अनवरत बांधे रखने का प्रयास रख रही है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 16, 2012 at 3:56pm

संदीप जी आपकी रचनाओं में वाह! फेक्टर जब होता है तो जबरदस्त होता है, लेकिन यह रचना आपकी रचनाशीलता के मानकों  से काफी पीछे है. इस अभिव्यक्ति में  प्रवाह और माधुर्य मुझे गुम लगा. भाव तो सुन्दर हैं, लेकिन आपकी रचनाओं वाला वाह फेक्टर नहीं  ढून्ढ पाई. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 16, 2012 at 1:19pm

संदीपजी, रचनाधर्मिता के संबन्ध में आपसे कुछ नहीं कहना क्यों कि आप स्वयं सीखने और तदनुरूप रचने का अपने लिए मानक बना चुके हैं. आपके प्रयासों में आशाजनक विश्वास और सुधार इस मंच पर सभी पाठकों के लिए हर्ष और आश्वस्ति का विषय रहा है.

हम क्या लिखते हैं के साथ-साथ हम क्यों लिखते हैं संलग्न है. फिर आता है हम कैसे लिखते हैं. आपसे इन विन्दुओं पर बात करते भी असहज हो रहा हूँ, फिरभी कह रहा हूँ, क्यों ? प्रतिक्रियाएँ तक शब्दमूलक होती जा रही हैं.. ’वाह’, ’बेजोड़’, ’अभिभूत’ या ’सुन्दर’ आदि.

अब बताइये, आप भी यदि ऐसे में ऐसी ही प्रविष्टियाँ डालने लगे तो फिर क्या संदेश जायेगा ? यह सही है, रचना कोई हो बेकार नहीं होती, लेकिन रचनाएँ अलग अवश्य होती हैं. जिसकी आपसे अपेक्षा है.  या, आपभी इन वाहवाहियों के आकांक्षी हो रहे हैं --’बहुत सुन्दर रचना’, ’भावपूर्ण रचना’, ’गुनगुनाने लायक रचना’.. देखिये हमने भी तीन-तीन विशेषण दे दिये..  खुश रहिये .. आदि आदि !

सधन्यवाद.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 16, 2012 at 1:16pm

सुन्दर गीत मित्र संदीप गुनगुनाने में मज़ा आया बधाई स्वीकारें

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 16, 2012 at 11:00am


आदरणीय अजय सर जी , आदरणीय अविनाश सर जी , आदरणीया सुमन जी सादर प्रणाम
आपने रचना को पढ़ा मान दिया और मेरा उत्साहवर्धन किया इसके लिए मैं तहे दिल; से आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाए रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 16, 2012 at 10:58am

आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम
ये गीत मैंने पैरोडी की तरह नहीं लिखा है
किन्तु आपको पसंद आया मुझे ख़ुशी हुई
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाऐ  रखिये सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 9:24am

मेरी तमन्नाओं की तक़दीर तुम संवार दो
प्यासी है ज़िंदगी और मुझे प्यार दो.....

सुन्दर पैरोडी |

Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 9:42pm

bahut pyaaree kavitaa hai,,,bhav bahut hi sunder hain

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service