For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते


फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते

मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते

अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते

दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते

बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते


-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 622

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:27am

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है 
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........

पुष्यमित्र साहेब ,  ..... बहुत खूबसूरत पेशकश . दाद कुबूल फरमाएं!

Comment by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 2:12am

भाई जी सुन्दर अभिव्यक्ति है
हार्दिक बधाई स्वीकारें
 
निवेदन है कि मुझे इस ग़ज़ल का अर्कान बता दें तो लयात्मक रूप से पढ़ कर और आनंद उठा सकूं ....

Comment by satish mapatpuri on December 12, 2012 at 1:27am

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........

पुष्यमित्र साहेब , रकीब तो खिलाफत में रहेगा ही ..... बहुत खूबसूरत पेशकश . दाद कुबूल फरमाएं

Comment by MAHIMA SHREE on December 11, 2012 at 10:49pm

दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते......

नमस्कार पुष्यमित्र जी ..

बहुत ही खुबसूरत गजल .. बधाई आपको



Comment by नादिर ख़ान on December 11, 2012 at 10:39pm

वाह बहुत उम्दा गज़ल क्या कहने पुष्यमित्र जी 

लाजवाब रचना ...

Comment by ajay sharma on December 11, 2012 at 10:01pm

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है 
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........wah wah wah wah no more words 

Comment by Pushyamitra Upadhyay on December 11, 2012 at 9:51pm

सादर आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय श्री गणेश सर....आशीष बनाए रखिये
-आपका अनुज पुष्यमित्र


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 9:17pm

फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते................शानदार मतला,

मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते......................वाह वाह, बहुत खूब , सुन्दर कहन, साफ़ साफ़ बोल दो, नहीं तो बेकार समय बर्बाद करने से क्या फायदा, कही और ट्राई किया जाय ...हा हा हा हा |

अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते.............बहुत खूब जनाब , यह शेर भी बढ़िया निकाला है |

दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते........दिल के अखबार में कई किस्से छपे होते है भाई , बढ़िया शेर |

मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते..........आय हाय हाय , क्या बात है, बहुत खूब |

बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते.......अच्छा है |

दाद कुबूल करें पुष्यमित्र जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service