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अपने दुःख से नहीं दुसरे के सुखसे दुखी

 

कर्ण और राम दो मित्र थे l राम एक व्यापारी बन गया लेकिन कर्ण अभी भी बेरोजगार था जिसकी वजह से उसकी घर की हालत ठीक नहीं थी l समय समय पर राम भी अपने मित्र की मदद कर देता था कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा l और एक दिन कर्ण को एक अच्छी नौकरी मिल गई जिस कारण घर में किसी वस्तु की कमी नही रह गई थी और धीरे धीरे धन की समस्या भी समाप्त होने लगी थी l इस कारण अब वह अपनी जिंदगी सही से और शांति की जिन्दगी जी रहा था l  व्यापार मैं व्यस्त होने की वजह से राम और कर्ण एक दुसरे से मिल नहीं पाए थे l एक दिन राम अपने मित्र से मिलने चला गया और लेकिन उसके रहन सहन को देखकर हस्तप्रभ रह गया की कहाँ वह गरीब सा कर्ण और कहाँ आज उसका हँसता खेलता परिवार है l  कर्ण ने अच्छे से उसका स्वागत किया और उसको आश्वासन दिया की अगर उसे किसी प्रकार से उसकी जरुरत पड़े तो उसे याद करें वह हर तरह से उसकी मदद करने को तैयार रहेगा l उसके बाद राम अपने घर चल गया लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में कुछ कसक रह गई की जो कर्ण सदा उसे मदद की आश रखता था आज वो अपने आप को उससे कहीं अधिक सम्रिधिशाली और सुखी समझता है l अत: उसको उसकी ख़ुशी देखि न गई और अपने दयनीय स्थिति को भुला उसने कर्ण को अपने से ज्यादा दयनीय स्थिति में पहुँचने की ठान ली l

एक दिन मौका पाकर उसने कर्ण के घर में आग लगा दी जिसमे उसका घर संसार उजड़ गया और इस आग की झपटे में उसका एकलौता लड़का आ गया इस सदमे को कर्ण की पत्नी सह नहीं सकी और वो गंभीर बीमारी का शिकार हो गई कर्ण अक्सर कहा करता था की अगर उसने कहीं स्वर्ग देखा है तो वह उसके घर में ही जहाँ उसकी सुंदर सुशील और धर्मपरायण पत्नी है और एक आज्ञाकारी और प्यारा सा पुत्र है l आज धरती का सबसे अभागा पुरुष मान रहा था लेकिन भविष्य किसने देखा है जिसे राम ने अपने मित्र के घर में आग लगाई थी आज व्यापार से तो पहले ही दयनीय स्थिति से गुजर रहा था कुछ ही दिनों बाद उसके बड़ी पुत्र वधु का देहांत हो गया और बेटी की जिस व्यक्ति से शादी हुई थी उसने दहेज़ के लालच में उसे छोड़ दिया राम ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस लोभी पुरुष को समझाने में नाकामयाब रहा अब अपने मित्र से भी कोई मदद नहीं मांग सकता था अत: अब पछताने के अलावा उसके पास कुछ नहीं बचा खुद तो नरक में जी ही रहा था लेकिन उसने तो अपने मित्र की जिंदगी बर्बाद कर दी l

जब कर्ण का हँसता खेलता परिवार था तो उसे स्वर्ग सा अनुभव होता था घर में शांति और मन भी शांत था धार्मिक प्रवर्ती होने के कारण मन में प्रभु का ध्यान था l दूसरी और मह्त्वकंशी होने के और दुसरे की ख़ुशी को ना देखने की वजह से राम सदा दुखी और नरक सा जीवन व्यतीत कर रहा था और अपने मित्र के साथ दुर्व्यहार करने के बाद उसने अपने दुःख की सीमा ही लाँग दी आज नरक से भी बुरी जिंदगी व्यतीत कर रहा है हर पल मृत्यु की मांग करता है और एक मृत्यु है की पास आने के बजाये दूर और दूर होती जा रही है शायद यही उसके पापो का फल है l किसी ने सही ही कहा कि "आज का इन्सान अपने दुःख से इतना दुखी नहीं जितना दुसरे के सुख से दुखी है"

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Comment by Shubhranshu Pandey on December 14, 2012 at 9:18am

आदरणीय, लगता है कि दोस्त की हालत ने आपको कुछ ज्यादा ही विचलित कर दिया है. ज्यादा परेशान न हों और पाठकों के विचारों पर एक ही वाक्य चिपकाने की जगह आप समुचित विचार देते...

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:18pm

केसरी  जी नमस्कार....

आपको मेरी ये कहानी पसंद आई आपका बहुत बहुत आभार.......

फूल सिंह

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:17pm

पाण्डेय जी नमस्कार....

ये मेरे दोस्त की अपनी आपबीती है जो मैंने कहानी के जरिये से व्यक्त की है

और आपको मेरी ये कहानी पसंद आई आपका बहुत बहुत आभार.......

फूल सिंह

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:15pm

प्राची जी नमस्कार....

ये मेरे दोस्त की अपनी आपबीती है जो मैंने कहानी के जरिये से व्यक्त की है

और आपको मेरी ये कहानी पसंद आई आपका बहुत बहुत आभार.......

फूल सिंह

Comment by Shubhranshu Pandey on December 12, 2012 at 1:24pm

आदरणीय

तथ्य के ताने बाने को और सघन बुनने से प्रवाह में निरंतरता आयेगी...

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 9:26am

सत्य है, जैसा हम बाहर देते है, प्रकृति हमें उसे कई गुना करके लौटाती है... फिर चाहे वो सद्भाव जनित सुकर्म हों या फिर दुर्भाव से ग्रसित पाप कर्म...

इस नीति उपदेशक लघुकथा के किये बधाई.

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 3:14am

हितोपदेश कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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