For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : बरगदों से जियादा घना कौन है?

बहर : २१२ २१२ २१२ २१२

बरगदों से जियादा घना कौन है

किंतु इनके तले उग सका कौन है

 

मीन का तड़फड़ाना सभी देखते

झील का काँपना देखता कौन है

 

घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ

छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है

 

लाख हारा हूँ तब दिल की बेगम मिली

आओ देखूँ के अब हारता कौन है

 

प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने

तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on December 4, 2012 at 2:25am

भाई जी यह तो मंच और माहौल की गरिमा है कि खुल कर कुछ कह सुन लेता हूँ और आपकी मुहब्बत है कि आप कहे पर विचार कर लेते हैं नहीं तो ऐसे मंच भी है जहाँ मुझ जैसे कईयों के कहे का दम वाहवाहियों के बोझ तले घुट कर रह जाता है 

स्नेह बनाए रखें ....
सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:25pm

डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:25pm

Saurabh Pandey जी, बहुत बहुत शुक्रिया।

निरंतर स्नेहाकांक्षी।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:24pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया। स्नेह बनाए रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:24pm

वीनस केसरी जी, धन्यवाद साहब।

आप ठीक कह रहे हैं आखिरी शे’र स्पष्ट नहीं है और मेरी ये व्यक्तिगत राय है कि अगर शे’र का अर्थ शाइर को ही समझाना पड़े तो वो शे’र नहीं कूड़ा है। आखिरी शे’र कारखाने में ले जा रहा हूँ। आपकी बेबाक राय से आपके हम जैसे मित्रों को बहुत फायदा होता है। स्नेह बनाए रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:20pm

arun kumar nigam जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:20pm

 UMASHANKER MISHRA जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 8:28pm

धर्मेंद्र भाई नमस्कार !

बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। खास कर मतला तो बहुत बहुत जानदार है...इस मतले पे कुर्बान जाऊँ॥

बरगदों से जियादा घना कौन है।

किंतु इनके तले उग सका कौन है॥

वाह भाई वाह....ढेरो दाद हाजिर है ...मासाल्लाह !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 3, 2012 at 7:06pm

बधाई-बधाई-बधाई.. .

प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने
तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है 

आय-हाय-हाय.. हर तरह से उम्दा शेर !  भाव एवं कहन से भी और सीखने के लिहाज से भी.  बधाई.. .

आखिरी शेर पर विद्वद्जन कुछ कह रहे हैं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 3:34pm

मीन का तड़फड़ाना सभी देखते

झील का काँपना देखता कौन है

 

घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ

छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है-----   धर्मेन्द्र जी ये दोनों शेर तो हासिले ग़ज़ल हैं जितनी तारीफ की जाए कम है पर मुझे भी सच में अंतिम शेर ने उलझा दिया आप यह कहना चाह रहे हैं की यदि कोई अर्थात लड़की या बहन मेरी कलाई जोर से पकड़ ले तो देखता हूँ की बहन का गला कौन घोंट सकता है -----बहुत ही उत्तम दर्जे का शेर बन रहा है बस कुछ स्पष्टता  मांगता है----मेरा सुझाव ---कोई बांधे अगर डोर इस हाथ पे ,देखूं उसका गला घोंटता कौन है ----ठीक लगे तो ------दिली दाद कबूल कीजिये इस ग़ज़ल के लिए 

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service