For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतिभा (लघु कथा )/डॉ. प्राची

“हैलो क्षिप्रा, कैसी हो? मैं निशा बोल रही हूँ, मॉडर्न स्कूल की प्रिंसिपल! आज सभी स्कूलों के लिए आयोजित पोस्टर कम्पीटीशन में तुम जज हो न?”

ओहो! निशा! कैसी हो? कितने समय बाद याद किया? क्या तुम भी आ रही हो?क्षिप्रा नें पूछा.

“मेरे स्कूल के बच्चे प्रतिभागिता कर रहे हैं , बच्चों को मोटिवेट करने के लिए आना तो चाहती हूँ, पर मेरे स्कूल में भी एक समारोह है, अब देखो! अच्छा तुम कितने बजे तक पहुँचोगी?”निशा नें पूछा .

“मैं ग्यारह बजे तक पहुचूंगी, आ सको तो आना, मिलते हैं फिर.” क्षिप्रा बोली.

क्षिप्रा आयोजन स्थल में पहुचती है.

बच्चे रंग कूची कलम लेकर लगे है पूरी तन्मयता के साथ प्रदत्त विषय सन्निहित सतरंगी भावों को कोरे कागज पर उकेर देने के लिए. एक से बढ़ कर एक पोस्टर, किसी के भाव बेहतरीन तो किसी के रंग, किसी का सन्देश सुप्त विचारों को जगाता हुआ, तो कोई यथार्थता का सत्य बिम्ब. बच्चों की सोच कागज में कितने सच्चे खूबसूरत रंग ले कर उतरी थी, बस देखते ही बनता था, हर चित्र पर बस वाह!

छोटे बच्चों की अलग कैटेगरी- नन्हे नन्हे हाथ रंगीन मासूम सपनों की तितलियाँ कोरे कागज़ पर सजाते हुए . जीत हार की होड़ नहीं, बस पूरी लगन ,जोश, तन्मयता से रंगों की दुनिया में लीन,रंगों से बाते करते, सपनों से खेलते , निष्प्राण कागज़ में पूरी निष्ठा से विषयजन्य प्राण फूंकते.

क्षिप्रा का मोबाईल फिर बजा!

“हाँ! क्षिप्रा, तुम पहुँच गयी “

“हाँ!, मैं अन्दर ही हूँ निशा, तुम भी आ गयी क्या?”

“नहीं मैं तो नही आ पायी, पर मेरे स्कूल का एक बच्चा है, अरुण, बहुत प्रतिभाशाली है,उसने भाग लिया है, पता नहीं प्रतियोगिता में कैसा करे, पर है बहुत टैलेंटेड. तुम ज़रा देख ज़रूर लेना, ठीक है” निशा ने कहा. 

क्षिप्रा मुस्कुराई, और बच्चों के पोस्टरों की तरफ देख कर सोचा, शुक्र है, बच्चो के नाम और उनके स्कूल के नाम पोस्टर के पीछे लिखे हैं, और मैं उन्हें देख नहीं सकती.....और कागज़ कलम ले कर आगे बढ़ गयी,रंगों की सच्ची भाषा को आंकने.

Views: 971

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:57am

आदरणीय प्राची दी, प्रतिभा तो पिट ही रही है ! ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों की परीक्षा में(बोर्ड की भी) परीक्षा कक्ष में खुले तौर पर 'व्यवस्था-शुल्क' की मांग, तो इसका स्पष्ट प्रमाण है ! बहुत ही सुन्दर भाव का निर्वहन करती इस लघुकथा हेतु आपको सादर बधाई !

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2012 at 12:09am

अंत बेहद भला लगा
आमतौर पर लघुकथा में कटाक्ष का बोलबाला रहता है और शायद कटाक्ष को ही केन्द्र में रख कर लिखने लगे हैं
आप अंत इस तरह भी कर सकती थीं कि -

// क्षिप्रा मुस्कुराई, और बच्चों के पोस्टरों की तरफ देखने लगी मगर अब उसकी नज़र उन रंगों के बीच अरुण का नाम खोज रही थीं //

मगर आपने जिस सकारात्मक ढंग से कथा को समाप्त किया है उसके लिए विशेष बधाई स्वीकारें
बेहद शानदार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 2, 2012 at 10:43pm

विरले ही अब शेष हैं,जो हैं सच के साथ

अनुशंसा में  दौर में , प्रतिभा पीटे माथ ||

लघुकथा में गर्भित संदेश निर्णायकों तक पहुँचे तो रंगों की सच्ची भाषा का निष्पक्ष मूल्यांकन हो. हमारी शुभकामना है ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:49pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लादीवाला जी,

आप ऐसी परिस्थिति से गुज़रे... आपकी किंकर्तव्यविमूढ़ता नें आपको प्रोत्साहन पुरूस्कार देने पर विवश किया, यह साझा करने के लिए आपका सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:45pm

इस लघुकथा निहित सन्देश आपको पसंद आया इस हेतु आभार आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:43pm

इस लघुकथा के भाव आपको पसंद आये, इस हेतु आपकी आभारी हूँ आदरणीय चंद्रेश कुमार जी.

प्रतिभा की पहचान कहीं नाम से न हो, इसलिए नाम को छिपाना पड़ा..... सिफारिश, फेवरेटिस्म, भेदभाव इतनी छोटी छोटी प्रतियोगिताओं में पैठ बना लेते हैं की आयोजकों को भी सावधान रहना ही चाहिए, प्रतियोगीता के निर्णय की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:32pm

आदरणीय अशोक जी, सादर धन्यवाद इस लघुकथा को पसंद करने के लिए !

आपने सही कहा,अक्सर परिस्थिति जन्य मूल्यों की ऐसी परीक्षाओं में परीक्षक के फेल होने के साथ प्रतिभा भी हार जाती है.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 7:09pm
यह मानसिकता अक्सर मुझे नजदीक से देखने का अवसर मिला है । यह दुर्भाग्य की बात है ।
फिर भी एक बार मुझे भी जजमेंट का अवसर मिला तब मेरे मित्र के बच्चे भागले रहे थे,  वह 
मित्र उस संस्था का अध्यक्ष भी था, पर मेरी तो हिम्मत नहीं हुई और मित्र के बच्चे को कॉन्सोलेशन 
इनाम से ही संतोष करना पड़ा और मैंने मेरे मित्र से क्षमा मांगी । अच्छी लघु कथा के लिए बधाई 
स्वीकारे डॉ प्राची सिंह जी 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 2, 2012 at 6:48pm

आदरणीया प्राची जी, सादर 

सुन्दर लघु कथा. सार्थक सन्देश. वर्तमान व्यवस्था. कुत्सित मानसिकता. 

बधाई 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 1, 2012 at 8:13pm

कितनी विडम्बना है, सच को तस्वीरों के पीछे छुपा कर रखना पड़ता है, क्योंकि कहीं सच को झूठ ना बना दिया जाए| डा. प्राची जी,बहुत ही सुन्दर तरीके से भावों को उभारा है और प्रेरणा दी है | आपको बहुत बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service