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कितना कुछ सुलगा बुझा, तेरे-मेरे बीच

ख्‍वाबों में भी हम मिले, अपने जबड़े भींच

कैसे फूलों में लगी, ऐसी भीषण आग

कोयल तो जलकर मरी, शेष बचे बस नाग

जबसे तुम प्रियतम गए, गूंगा है आकाश

तृन-टुनगों पर हैं पड़े, अरमानों की लाश

बिखरा-बिखरा दिन ढला, सूनी-सूनी शाम

तारों पर लिखता रहा, चंदा तेरा नाम

तुम बिन कविता क्‍या लिखूं, दोहा, रोला, छंद

भाव चुराते शब्‍द हैं, लय भी कुंठित, मंद

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 6, 2012 at 7:24pm

राजेश कुमार झा जी बहुत ही सुन्दर दोहे लिखे हैं ये दो तो बहुत पसंद आये 

बिखरा-बिखरा दिन ढला, सूनी-सूनी शाम

तारों पर लिखता रहा, चंदा तेरा नाम

तुम बिन कविता क्‍या लिखूं, दोहा, रोला, छंद

भाव चुराते शब्‍द हैं, लय भी कुंठित, मंद

 

Comment by राजेश 'मृदु' on November 6, 2012 at 2:52pm

सादर अभिनन्‍दन, त्रुटि को रेखांकित कर दिया । मेरे पोस्‍ट पर जबतक आपकी उपस्थिति नहीं होती है मुझे लगता है बेकार लिखा ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 1:39pm

भाई राजेश कुमार झाजी,  बहुत-बहुत बधाई ! बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है. भावाभिव्यक्ति भी उच्च है.

तुम बिन कविता क्‍या लिखूं, दोहा, रोला, छंद
भाव चुराते शब्‍द हैं, लय भी कुंठित, मंद .. . .   वाह ! 

एक बात :   तृन-टुनगों पर हैं पड़े, अरमानों की लाश  .... तृण-टुनगों पर हैं पड़ीं, अरमानों की लाश

सादर

Comment by रविकर on November 6, 2012 at 9:36am

बहुत सुन्दर |
आ. बधाई ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 5, 2012 at 5:10pm

तुम बिन कविता क्‍या लिखूं, दोहा, रोला, छंद

भाव चुराते शब्‍द हैं, लय भी कुंठित, मंद.................................वाह 

बहुत सुन्दर भाव प्रधान दोहावली, हार्दिक बधाई राजेश कुमार जी 

Comment by लतीफ़ ख़ान on November 5, 2012 at 3:48pm

जनाब राजेश कुमार जी ,सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई ....दोहों के माध्यम से मन की अभिव्यक्ति कोई  आप से सीखे | मेरे गीत की कुछ पंक्तियाँ .......होंट है रसीले गाल है गुलाबी ..नैन हैं नशीले चाल है शराबी ..वो पुरानी शराब की ख़ुमारी लगे ..कजरा आँज  के सजनी प्यारी लगे

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2012 at 1:24pm

सुन्दर दोहाभिव्यक्ति, बधाई श्री राजेश कुमार झा 

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