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झर गए पारिजात (श्रद्धेय सुनील गंगोपाध्‍याय की स्‍मृति में)

मूक हो गई

रांगा माटी

नीरव नभ

अनुनाद

रम्‍य तपोवन

गुमशुम-गुमशुम

झर गए पारिजात

कासर घंटे

ढाक सोचते

ढूंढ रहे

वह नाद

भरे-भरे मन

प्राण समेटे

भींगे सारी रात

कमल-कुमुदिनी

मौन मुखर हैं

कहां भ्रमर

कहां दाद

पंकिल पथ पर

हवा पूछती

कैसे ये संघात

जाओ अपने

देश को पाती

यह पता

कहां आबाद

अपनी खूशबू

आप लुटाकर

झर गए पारिजात

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 3, 2012 at 11:07am

श्रद्धांजलि के तौर पर एक उत्कृष्ट रचना.. .

इस पर बधाई न कहूँ. क्यों कि श्रद्धांजलि-उद्बोधनों पर तालियाँ या ’वाह’ का संप्रेषण इस भूमि के संस्कार में नहीं है.

नमन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2012 at 10:23am

बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 2, 2012 at 9:06pm

वाह, बहुत ही प्रवाहमय कविता रची है राजेश जी आपने, शब्द संयोजन सुन्दर लगे, अच्छी अभिव्यक्ति.. . ।

कृपया ध्यान दे...

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