For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़"

==========ग़ज़ल===========
बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़
वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २

पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं

बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ
आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं

जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर
हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं

चाँद को पाने मचलता जब समंदर का जिगर
मौज उठती है बहुत पर चाँद छू पाती नहीं

एक कोने में रखी जो सीख देती थी हमें
मौन है सूनी वो खटिया आज बतियाती नहीं

आधुनिक संसार में अब ज्ञान गूगल दे रहा
मान मर्यादा की शिक्षा छात्र को भाती नहीं

जिस हवा में बह गए हिटलर से तानाशाह भी
वो बगावत की हवा तूफ़ान अब लाती नहीं

आँख मूंदे खोजता है रोशनी नादान पर
ये अँधेरी राह तो मंजिल तलक जाती नहीं

वक़्त से ही सीखते हैं ये हुनर अब हम सभी
ज्यों नदी की धार पीछे लौट कर जाती नहीं

वो सनम जो बीच चौराहे खड़ा डंडा लिए
एक दिन पूजें उसे सब याद फिर आती नहीं

"दीप" जबसे पीठ पर खंजर चलाया यार ने
कर रहे हैं पीठ पक्की वीर अब छाती नहीं


संदीप पटेल "दीप"

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on October 16, 2012 at 5:19pm

संदीप जी बहुत उम्दा भाव है गज़ल के बधाई ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 4:41pm

आप बस धैर्य रखें संदीप भाई.  देखियेगा, आप स्वयं ही सधते चले जायेंगे.. 

पीर है खामोश, भर के आह, चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं.. .  इसके सानी में ’नज़्म भी’ कहने से क्या बात और खुल कर निखर सकती है ?

अब तो मूलभूत नियमों पर नहीं बल्कि ग़ज़ल की महीनी की बातें होंगीं, कहन की बातें होंगीं, रेशनलाइजेशन की बातें होंगीं. हम सब बहाव में साथ-साथ हैं...

जिस हवा में बह गए हिटलर से तानाशाह भी
वो बगावत की हवा तूफ़ान अब लाती नहीं

इस शेर में ’हवा’ का दो दफ़े होना खटक रहा है, इसे दुरुस्त करने की कोशिश करें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 4:18pm

आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस प्रतिक्रिया पे कुर्बान हो गया आपका ये चेला
यूँ लगा के बस किसी जंग के मैदान में खड़े लड़ रहे जवान को आज विजय श्री मिल गयी हो
लेकिन मुझे पता है की अब ये जंग और भी कठिन है ये तो बस चक्रव्यूह का पहला घेरा है जिसे संभवतः में भेदने में सफल हुआ हूँ
किन्तु आपने उत्साह इतना बढाया है की अगले घेरे को भेदने के लिए एक उमंग जाग उठी है
ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सर जी
अब और क्या कहूँ शब्द ही नहीं है निःशब्द हूँ और हतप्रभ भी आपकी प्रतिक्रिया से गुरुवर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 3:36pm

संदीप भाई !!  इसे कहते हैं आज की ग़ज़ल.. . ग़ज़लधर्मिता ’सिखाने’ वाले देख लें.  खैर

किस शेर को उद्धृत करूँ !? अभी तक कुल आठ अश’आर लोगों में साझा कर चुका हूँ.  शिल्प अपनी जगह, भाव को इस महीनी से गूँथा गया है कि दिल अश-अश कर रहा है.  दिल से बधाई लें, भाई. ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service