For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाहा था दिल ने जिसको वो दिलदार कब मिला
सब कुछ मिला जहाँ में मगर प्यार कब मिला

तनहा ही ते किये हैं ये पुरखार रास्ते
इस जीस्त के सफ़र में कोई यार कब मिला

बाज़ार से भी गुज़रे हैं हाथों में दिल लिए
लेकिन हमारे दिल को खरीदार कब मिला

उल्फत में जां भी हंस के लुटा देते हम मगर
हम को वफ़ा का कोई तलबगार कब मिला

तनहा ही लड़ रहा हूँ हालाते जीस्त से
हसरत को जिंदगी में मददगार कब मिला

Views: 379

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 10, 2012 at 10:47pm

ji bahut bahut shukriya veenus ji

Comment by वीनस केसरी on October 10, 2012 at 2:30am

आय  हाय हसरत साहब आपने तो दिल बाग बाग कर दिया
क्या खूबसूरत अशआर से नवाजा है मंच को
माशाअल्लाह लाजवाब

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 10, 2012 at 12:45am

ji bahut bahut shukriya adarniye saurabh ji raj ji sandeep ji

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 1:06pm

वाह वाह साहब
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने
दाद क़ुबूल फरमाइए आदरणीय

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 2:12pm

बहुत खूब-

//तनहा ही लड़ रहा हूँ हालाते जीस्त से 
हसरत को जिंदगी में मददगार कब मिला//

हसरतें पूरी हुईं तो ख़त्म हुईं, दिल अब कितना खाली खाली है. बधाई हो भाई हसरत साहेब!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 8, 2012 at 12:34am

हसरत भाई, इस ग़ज़ल के लिये दाद पेश कर रहा हूँ ..

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 7, 2012 at 2:29pm

bahut bahut shukriyah rajesh kumari ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2012 at 11:07am

उल्फत में जां भी हंस के लुटा देते हम मगर
हम को वफ़ा का कोई तलबगार कब मिला ----गजब का शेर ---बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है दाद कबूल करें शरीफ अहमद जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service