For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

============ग़ज़ल=============

लगा है वक़्त कितना ये हसीं दुनिया बसाने में
बफा औ इश्क के खातिर सभी वादे निभाने में 

भरोसा उठ चुका है दोस्ती के नाम से लोगो
लगा है यार को ही यार अब तो आजमाने में

जिगर के जख्म पर भी वाह वाही दी मुझे इतनी
मजा आने लगा हमको ग़ज़ल कहने सुनाने में

बहुत बेचैन रहता हूँ तडपता हूँ तरसता हूँ
मुहब्बत लुत्फ़ देती है मगर खुदको सताने में

हकीकत रू-ब-रू होगी बुरा वो मान बैठेंगे 
असल सुनता नहीं कोई जमाने से ज़माने में

दिखावे से भरी दुनिया यहाँ हर शै दिखावे की
लगा हर आदमी हमको हसीं सपना दिखाने में

पुराने जख्म हैं गहरे मगर चेहरे में रंगत है
महारत है हमें हासिल ग़मों में मुस्कुराने में

जुदाई का मजा भी आ रहा है रात में देखो 
अकेले बैठ कर शम्मा जलाने में बुझाने में

कभी हमदर्द थे वो "दीप" चढ़ कर चाँद पे बदले 
बड़े मगरूर होकर वो लगे हैं दिल दुखाने में

संदीप पटेल "दीप"

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2012 at 10:51am

आदरणीय अजीतेन्दु जी सादर नमन
आपको ये शेर पसंद आया और आपकी दाद मिली इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 22, 2012 at 8:12am

सुन्दर गजल मित्रवर....बधाई.........इन पंक्तियों के लिए खासतौर से.......

कभी हमदर्द थे वो "दीप" चढ़ कर चाँद पे बदले  
बड़े मगरूर होकर वो लगे हैं दिल दुखाने में 

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 21, 2012 at 10:57am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर नमन
आपका अत्यंत आभारी हूँ के आपने हमेशा अपनी मुक्त प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढाया है
आपका ह्रदय से शुक्रिया
ये स्नेह अनुज पर यों ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 21, 2012 at 10:56am

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
इस ग़ज़ल को पसंद करने हेतु
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 20, 2012 at 6:37pm

पुराने जख्म हैं गहरे मगर चेहरे में रंगत है 
महारत है हमें हासिल ग़मों में मुस्कुराने में ---बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है प्रिय संदीप जी और ये शेर तो बहुत बहुत पसंद आया 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 20, 2012 at 4:33pm

मजा आने लगा तुमको ग़ज़ल कहने सुनाने में

लुफ्त ले रहे हमभी तुम्हारी गजल गुनगुनाने में 

वाह वाह भाई श्री संदीप पटेल जी,हार्दिक बधाई 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 20, 2012 at 12:43pm

आदरणीय लोकेश जी सादर
आपको ग़ज़ल पसंद आयी और सराहना मिली
स्नेह इसी  तरह बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by लोकेश सिंह on September 20, 2012 at 9:32am

जिगर के जख्म पर भी वाह वाही दी मुझे इतनी
मजा आने लगा हमको ग़ज़ल कहने सुनाने में

"क्या बताये दोस्त ये दुनिया का दस्तूर पुराना है ,

जख़म  को नासूर बनता ये जमाना है ,

तेरे एहसास जुदा नहीं औरो से ,बड़ा बेदर्द ये फसाना है ,"

बहुत ही खुबसूरत गजल ,इसे ही खुबसूरत लिखते रहिये दीप जी इस्वर आपके अंदर छुपे पहनकर  को  सलामत रखे ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और विस्तार से सुझाव के लिए आभार। इंगित…"
37 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आ. बृजेश ब्रज जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें.मतले के ऊला में ये सर्द रात, हवाएं…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफमुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन1212  1122  1212  112/22ये सर्द…See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपके सकारात्मक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई  आपकी इस प्रस्तुति पर कुछेक…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
19 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service