For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाँच दोहे आँसू भरे

राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग

गधा जो देखन मैं चला, गधा न मिलया मोय
तब इक नेता ने कहा, मुझसा गधा न कोय

उजली खादी पहन के, करते काले काम
इनका बंटाधार अब, करदो मेरे राम

अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द

हाय  हमारे मुल्क का, फूटा हुआ नसीब
उसने ही विष दे दिया, समझा जिसे तबीब

-जय हिन्द ! 

Views: 1029

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on September 13, 2012 at 10:23am

sahi kaha bhaai..........thik karunga

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 10:21am

आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपके दोहों में भाव गज़ब के हैं या यूँ कहूँ आपकी कलम जब चलती है देश की एक तस्वीर हास्य के साथ मुखर हो जाती है
साधुवाद इन दोहों हेतु
किन्तु कुछ प्रवाह में कमी है
शायद
गधा जो देखन मैं चला  १४ मात्रा
को यदि यूँ लिखें
गधा देखने मैं चला  १३ मात्रा


"हाय"   का प्रयोग भर्ती का लग रहा है
वहाँ आज कर दें तो कैसा रहेगा

एक बार फिर सादर बधाई आपको इन दोहों के लिए सर जी
अनुज की इस ढिठाई पर क्षमा कीजिये

 

Comment by Albela Khatri on September 13, 2012 at 10:21am

जय हो अम्बर जी की.........
वाह मज़ा आ गया

चढ़ते ज़्यादा  सही है...शुक्रिया

वैसे कहना मत किसी से " हमारे "  तो मैंने आपके कहने से पहले ही कर दिया था क्योंकि सीमा जी ने संकेत दे दिया था ....हा हा हा

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 10:15am

//राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग                    चढ़ गए में ए की मात्रा गिरानी पड़ रही है , सुझाव: चढ़ते
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग //

शासन हो जो फ़ौज का, चढ़े लाल तब रंग.

मुँह से उगलें रक्त ये, कूटे जाँय दबंग.

//गधा जो देखन मैं चला, गधा न मिलया मोय               'जो' को गिरा कर पढ़ना पढ़ रहा है सुझाव : खोजने
तब इक नेता ने कहा, मुझसा गधा न कोय //

भले कहे निज को गधा, देता पंजे मार. 

चालू नंबर एक का, नेता रंगा सियार..

//उजली खादी पहन के, करते काले काम
इनका बंटाधार अब, करदो मेरे राम //

राम करेंगे कुछ तभी, जब चाहें हम आप.

आखिर होते हैं हमीं, नेताओं के बाप..  

//अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द//

हुआ जेल में बंद जो, वह तो इक फनकार.

आतंकी को देखकर, काँप जाय सरकार..

//हाय रे मेरे मुल्क का, फूटा हुआ नसीब                     'रे मेरे' में भी मात्रा गिरानी पड़ रही है कृपया इसे 'हमारे' कर लें 
उसने ही विष दे दिया, समझा जिसे तबीब//

____________________________

जैसा हमने था किया, वही रहे हैं भोग.

अब तो सारे एक हों, दूर करें यह रोग..

सूझ बूझ से काम लें, भला नहीं संग्राम.

आंसू पोछें हम सभी, करें स्वयं का काम..

चिंता है निज देश की, खींच दिया है चित्र.

शानदार दोहे रचे, तुम्हें बधाई मित्र..        सादर

Comment by Albela Khatri on September 13, 2012 at 9:50am

जी सीमा जी.अवश्य ...
सादर

Comment by seema agrawal on September 13, 2012 at 9:48am

राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग 
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग 

अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द 
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द........वाह बहुत बढ़िया  दोहे अलबेला जी 

दोहों के आँसू हमें ,व्यथित करें हैं हाय !

अंतिम दोहा देख लें ,अलबेले कविराय 

Comment by Albela Khatri on September 13, 2012 at 9:37am

धन्यवाद राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2012 at 9:27am

वाह वाह सच कहा आंसू भरे हैं दोहों में जैसे भारत माता की आँखों में भरे हैं बचाओ इस देश को दगाबाजों से मक्कारों से -----बहुत बेहतरीन दोहे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service