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मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ

मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ


बहुत उकसा के पूछा
बताओ कौन हो तुम
क्या हो तुम ???

तुम दिखावटी हो
या सच में फूल हो
नहीं नहीं
शायद तुम खार हो
कितना ग़ज़ब लगता है
तुम्हारा अलग अलग सा दिखना
किसने पैदा किया है तुम्हे 
कोई जादूगर
बागवान था क्या ??
गेंदे के फूल से 
गुलाब की खुशबू
लाजवाब है ये कारीगरी
खुदाई सी लगती है
पर है हकीकत

चाँद तारा या आफताब
क्या हो तुम
या जर्रा-ए-कायनात
महज इक पत्थर हो तुम
अँधेरे गम हो जाते हैं
तुम्हारी सीरत से
या कोई गोहर हो
जिसे तराशा है
किसी जोहरी ने
जो रात दिन
अपनी चमक बिखेरता है
जादुई हीरा
जिसमे धूल जमती ही नहीं
कौन हो तुम ???

जबाब आया
कुछ पलों के बाद
अनूठा सा अद्भुत सा
चमत्कारी जबाब
सुनो
मैं घड़ा हूँ माटी का
इससे अधिक कुछ भी नहीं
मेरे माँ बाप ने सौंपा है
मुझे इक कुशल कुम्हार के हाथों में 
उस कुम्हार की कारीगरी हूँ
उसकी ही जादूगरी हूँ मैं
मैं तो बस एक अदना सा शिष्य हूँ
अपने पूज्यनीय शिक्षक का
जिसने मुझे तराशा है
इस दुनिया के मुताबिक़
अपने मुनासिब

और हाँ मैंने उसे कुम्हार यूँ ही नहीं कहा
जो गुरु है मेरा
हकीकत आप जानते हैं
वो तो भगवान है
लेकिन फिर भी कुम्हार ही क्यूँ ???
क्यूंकि उसे दुनिया की सबसे कीमती शै
से कोई लेना देना नहीं है
वो मुफ्त में तराशता है माटी को
अपने हिसाब से
और नहीं करता हिसाब किताब
उसकी ख़ुशी
उस माटी के घड़े को सुन्दर बनाने से
बढ़कर कुछ भी नहीं है
वो है ही इक कुम्हार
हर जादूगर
हर कारीगर
उसके बिना अधूरा है
मुझे उसके हाथों सँवरने का अवसर मिला
ये मेरे भाग्य हैं
और मेरा लचीलापन
स्वाभाव में ये उसके हाथों का जादू है
मैं कभी सख्त हो उठता हूँ
ये भी उनका ही कमाल है
मुझे इबरत मिली है
इस दुनिया से  सीखने की
और सिखाने की
मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 10:11am

आदरणीया रेखा जी
रचना को सरहाने हेतु आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Yogi Saraswat on September 6, 2012 at 10:10am

मैं घड़ा हूँ माटी का
इससे अधिक कुछ भी नहीं
मेरे माँ बाप ने सौंपा है
मुझे इक कुशल कुम्हार के हाथों में 
उस कुम्हार की कारीगरी हूँ
उसकी ही जादूगरी हूँ मैं
मैं तो बस एक अदना सा शिष्य हूँ
अपने पूज्यनीय शिक्षक का
जिसने मुझे तराशा है
इस दुनिया के मुताबिक़
अपने मुनासिब

शिक्षक दिवस के अवसर पर सार्थक रचना दी है आपने ! बधाई

Comment by Rekha Joshi on September 5, 2012 at 8:04pm

मैं तो बस एक अदना सा शिष्य हूँ 
अपने पूज्यनीय शिक्षक का 
जिसने मुझे तराशा है 
इस दुनिया के मुताबिक़ 
अपने मुनासिब,शिक्षक के प्रति सुंदर भाव संदीप जी ,शिक्षक दिवस पर बधाई 

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