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घनाक्षरी :

शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,

माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |

ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,

चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |

वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,

ऋतु रंग हरा-भरा, देश को प्रणाम है |

गंगा-यमुना हैं जहाँ, नर्मदा का नेह वहाँ,

पूजें कोटि देव यहाँ, देश को प्रणाम है ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 28, 2012 at 3:58pm

धन्यवाद भाई फूल सिंह जी !

Comment by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 3:50pm

श्रीवास्तव  जी नमस्कार

अति  ही सुंदर प्रस्तुति .........रचना के लिए बधाई

फूल सिंह

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 15, 2012 at 9:27pm

स्वागत है आदरेया रेखा जी ! हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Rekha Joshi on August 15, 2012 at 12:55pm

अति सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरनीय अम्बरीश जी 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 14, 2012 at 9:41pm

 भ्राता नीरज जी,  हार्दिक आभार अनुज ! यशस्वी भव!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 14, 2012 at 9:39pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी ! आपकी वाह वाह वाह किसी भी नगीने से कम नहीं है ....सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 14, 2012 at 9:38pm

आदरणीय उमाशंकर जी, आपके इस स्नेह के निमित्त आपके प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ ! सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2012 at 9:22am

वाह वाह वाह ! .. .  इसके नीचे कुछ नहीं.

सादर

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 13, 2012 at 11:38pm

प्रिय  अम्बरीश जी  शब्द नहीं है कहने के लिए

हर दृष्टिकोण से लाजवाब है

हार्दिक बधाई

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 8:17pm

आदरणीय प्रधान संपादक जी ! आपका स्नेहाशीष पाकर मन प्रमुदित हुआ ! स्नेह बना रहे ! सादर .......

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