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न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)

वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?
हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)

नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,
वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)

वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,
मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)

है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,
वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)

भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,
तू अब बेवजह तज़किरा कर रहा है; (६)

भले आज़माइश कड़ी से कड़ी हो,

हमेशा बशर आज़मा कर रहा है; (७)

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; (८)

भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; (९)


***

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:48pm

आदरणीय लक्ष्मण जी,

मैं भी एक नौसिखिया ही हूँ! और मनुष्य वैसे भी आयुपर्यन्त सीखता-सिखाता ही रहता है! बहरहाल जहाँ तक उस शे'र की बात है तो वह वास्तव में देश की वर्तमान हुकूमत को केंद्रित कर के ही लिखा गया है! आपके क़ीमती वक़्त के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:46pm

भाई अरुन 'अनंत' जी,

आपकी 'कुछ ज़्यादा ही दाद' सहर्ष क़ुबूल है! :-) धन्यवाद,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:44pm

आदरणीया रेखा जी,

आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:44pm

आदरणीय सौरभ भईया,

प्रणाम सहित अपना हार्दिक धन्यवाद आपको देता हूँ! आप जैसे सजग-साहित्य मर्मज्ञ से प्रशंसा के चंद शब्द मिलना सदैव ही हर्ष का कारण बनता है! इस मंच पर आने के पश्चात आप लोगों के ही उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के कारण अपने अंदर इतना सुधार ला पाया हूँ! मतले का विचार पिछली सर्दी में चारकोल सुलगाते वक़्त यूँ ही आ गया था! :-)) अपने स्नेहाशीष से सिंचित करने हेतु कृतज्ञता ज्ञापित है! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:38pm

आदरणीय अभिनव भईया,

आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप है! एक काशीवासी को दूसरे काशीवासी से मिला स्नेह मेरे लिए बहुत ही अहमियत रखता है इसे सहेज कर रख रहा हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:36pm

वीनस  जी,

आपकी प्रतिक्रिया पा कर सुखद अनुभूति हुई! मेरे ओबीओ पर आगमन के साथ ही आपने हर क़दम पर मुझे राह दिखाई है शायद यह ग़ज़ल उसी का परिणाम है! माँ शारदे की क्या कहूँ उनकी कृपा तो मुझ पर सदैव ही रही हैकिन्तु मैं अकिंचन उनके आशीर्वाद को पाकर भी अवहेलना कर बैठता हूँ मगर मेरे परिश्रम को देख कर शायद उनका ह्रदय पसीजा और उन्होंने वो 'कुछ' शे'र मुझसे लिखवा लिए! :-)) अगर आप उस दिन मेरे पीछे हाथ धो कर नहीं पड़े होते तो शायद आज ये दिन नहीं आया होता! ;-)

आपका हार्दिक आभार,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 5:28pm

संदीप जी , इस अश'आर पर खास तौर से दाद कबूल करें-

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना

वो हर बात पर मशवरा कर रहा है |

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on August 5, 2012 at 4:03pm

न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है;... अद्भुत... मतला जकड लेता है... साथ ही तमाम शेर गजब है...

बहुत ही उम्दा गजल हुई आदरणीय वाहिद भाई जी... सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2012 at 3:56pm
आदरणीय संदीप द्वेदी वाहिद कशिवाशी जी मुझ जैसे नासिखिए के लिए 
टिपण्णी कारन बेजा होगा | पर एक पाठक के रूप में मुझे ये पंक्तिया 
बहुत पसंद आई - 
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; 
भले लाख टुकड़े हुए आईने के,वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; 
 
मुझे तो इस में देश का वर्तमान हुकूमत का आइना झलक रहा है |
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2012 at 3:19pm

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है....

संदीप भाई इस शेर के लिए कुछ ज्यादा ही दाद काबुल कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

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