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वक़्त (कुछ दोहे)

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वक़्त चिरैया उड़ रही , नित्य क्षितिज के पार l 
राग सुरीले छेड़ती , अपने पंख पसार ll
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वक़्त परिंदा बाँध ले , बन्ध न ऐसो कोय l
थाम इसे जो उढ़ चले , जीत उसी की होय ll
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बीते पल की थाप पर , मूरख नीर बहाय l
खुशियों को ढूँढा फिरे , कबहु तुष्टि ना पाय ll
**************************************************
कल क्या होवे सोच जो , अपनी नींद गवाँय l
स्वप्नों के धागों उलझ , नित नित तड़पा जाय ll
**************************************************
जनम पूर्व से बह रहा , मृत्यु पार तक जाय l
शाश्वत औ साक्षी सदा , हर पल साथ निभाय ll
**************************************************
आलस  निद्रा डूब कर , जो परिहास उढ़ाय l
वो जड़ सम सोया रहे , पग पग ठोकर खाय ll
**************************************************
मान करे जो वक़्त का , वर्तमान रम जाय l
भूत-भविष उसके चरण , अपनें शीश नवाय ll
**************************************************
अबहु भयी है देर नहिं, थाम वक़्त की डोर l
मन आनंदित हो मगन , बढ़े सत्य की ओर ll
**************************************************
 

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 24, 2012 at 10:22am

बहुत ही सधे हुए, शिल्प और कथ्य की दृष्टि से अति उत्तम दोहावली कही है डॉ प्राची जी. इन्हें पढ़ कर ह्रदय शीतल हुआ, हार्दिक साधुवाद स्वीकारें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 12:48am

सीमा जी को है नमन , आतीं सबके काम.

अनुमोदित जो कर दिया, उसके लिए प्रणाम..  सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 12:45am

डॉ० प्राची जी,

ईश्वर की सारी कृपा, उनका यह अनुदान. 

आभारी  हूँ  आपका,  रक्खा  मेरा  मान..     सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2012 at 11:51pm

डा. प्राची, आपके दोहे मात्रिक रूप से सधते जा रहे हैं.  हार्दिक बधाई. 

छांदसिक रचनाओं में मात्रा और वर्ण के साथ एक और महत्त्वपूर्ण विन्दु होता है, और वह है गेयता. आप अपने दोहों को गा कर भी देखिये, शब्द-संयोजन भी सधता जायेगा.

छंद पर हो रहे आपके गंभीर प्रयास को मेरी सादर शुभकामनाएँ.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 8:00pm

 

आदरणीय संजय मिश्रा जी,
दोहों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 7:59pm

आदरणीय अम्बरीश जी,

आपको मेरा दोहा छंद पर  किया गया प्रयास रुचा, इस हेतु आपका आभार. आपके द्वारा प्रदत्त सुझावों का सादर स्वागत है, आपका धन्यवाद.. मार्गदर्शन कृपा बनाए रखें. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 7:56pm
आपका आभार अरुण शर्मा जी
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 6:24pm

सुन्दर दोहे आदरणीया डा प्राची सिंह जी...

सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 4:23pm

अति सुंदर दोहे सभी, सारे देते ज्ञान.

सबको ही अपनाइये, पायेंगें सम्मान..

आनंदित मन हो गया, दूर हुई सब पीर.

दिली बधाई आपको, आये याद कबीर..

***********************************************

सुधार हेतु कुछ सुझाव .....

  २२१

//आलस्य निद्रा डूब कर , जो परिहास उढ़ाय l
वो जड़ सम सोया रहे , पग पग ठोकर खाय ll//
२११
आलस निद्रा डूब कर , जो परिहास उड़ाय  l
वो जड़ सम सोया रहे , पग पग ठोकर खाय ll
 
//अबहु देर भयी न बहुत , थाम वक़्त की डोर l  (गेयता)
मन आनंदित हो मगन , बढ़े सत्य की ओर ll//    

//अबहु भयी है देर नहिं, थाम वक़्त की डोर l
मन आनंदित हो मगन, बढ़े सत्य की ओर ll//

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 23, 2012 at 4:00pm

आदरेया बहुत ही सुन्दर दोहे रचे हैं आपने, इतने शीतल जैसे जल. बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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