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जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी

सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट  है पर माल नहीं है बाबाजी

क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी

दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है
जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी

मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी

देश बेच कर खाने वाले लोगों का
लोहू शायद लाल नहीं है बाबाजी

उनकी ममता घुट घुट कर मर जाती है
जिनके अपने लाल नहीं है बाबाजी

मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी

हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी

-अलबेला खत्री

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 20, 2012 at 9:21am
बिना नाल का हाश्य अलबेला घोडा बाबाजी 
दबजाने पर मरने का है  डर थोडा बाबाजी /
दर्पण मत देखो रूप ढलते क्यों देखो बाबाजी 
दर्पण वे देखा करते जिनका रूप ढले बाबाजी 
हार्दिक धन्यवाद भाई अल्बेलाजी  

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 20, 2012 at 8:11am

ये घोड़ा तो बगैर नाल ही सरपट दौड़ता है, वाह बहुत बढ़िया, बाबा के बहाने आप तो बहुत ही खुबसूरत अशआर कह गए है, लोहू पर एक बार ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा |

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