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गज़ल - आदमी जो बेतुका है

वो अगर  मुझसे खफा है

हक है उसको क्या बुरा है

 

घोंसले  के साथ  जुडकर

एक  तिनका  जी  रहा है

 

जो अपरिचित  है नदी से

बाढ़   पर  वो  बोलता  है

 

है   यकीं   चारागरी   पर

हो  जहर  तो  भी  दवा है

 

देख  कर  मुँह  फेर लेना

कुछ  पुराना   आशना  है

 

टूट  ही  जाना  है  उसको

सच  दिखाता  आइना  है

 

जी  रहा   तुकबंदियों  को 

आदमी   जो   बेतुका   है

 

 

..................... अरुन श्री !

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Comment

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Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 11:08am

गणेश जी बागी सर , सम्मानित महसूस कर रहा हूँ आपकी टिप्पणी पढकर ! आपने गज़ल को पढ़ा ही नही , महसूस भी किया ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 10:56am

वीनस केसरी सर , आपके Good ने तो Feel Good का एहसास करा दिया !धन्यवाद !
वैसे आपसे सुझावों की भी उम्मीद रहती है !
सादर !

Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 10:53am

आशीष यादव जी , पसंदगी के लिए शुक्रिया आपका !

Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 10:50am

सीमा अग्रवाल मैम , धन्यवाद आपकी सराहना के लिए और शुभकामनाओं के लिए भी !

Comment by Raj Kumar Rohilla on July 20, 2012 at 9:25am

बहुत सुन्दर लिखा है भाई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 20, 2012 at 9:22am

वाह वाह शानदार अरुण भैया छा गए
क्या शानदार शेर कहे हैं

घोंसले  के साथ  जुडकर

एक  तिनका  जी  रहा है

जो अपरिचित  है नदी से

बाढ़   पर  वो  बोलता  है


दाद पे दाद क़ुबूल कीजिये


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 20, 2012 at 8:56am

//घोंसले  के साथ  जुडकर

एक  तिनका  जी  रहा है//

अरुण जी, क्या कहूँ , ऐसे अशआर रोज़ रोज़ नहीं निकलते, इस ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है, आपकी इस कृति को सलाम | मुबारकवाद कुबूल करें |

Comment by वीनस केसरी on July 20, 2012 at 1:52am

जी  रहा   तुकबंदियों  को 

आदमी   जो   बेतुका   है

 
good

Comment by आशीष यादव on July 20, 2012 at 12:26am

कमाल के शे'र कहे हैं। एक उम्दा गजल है। बदाई स्वीकारें

Comment by Arun Sri on July 19, 2012 at 8:04pm

सौरभ पाण्डेय सर , आपकी उपस्थिति ने मन प्रसन्न कर दिया ! आज कल थोडा व्यस्त हूँ क्योकि टैक्स ऑडिट का समय आ रहा है ! इसीलिए निरंतरता नही बन पा रही है ! लिखना भी कम हो गया है इस समय ! हालाँकि भाव कागज पर उतारता रहता हूँ लेकिन बिखरे हुए  टुकड़ों को जोड़कर कविता नही बना पा रहा  हूँ !
गज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया किसी सम्मान से कम नही ! सादर धन्यवाद !

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