For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीन कह-मुकरियाँ

(एक अभिनव प्रयोग)

 

खुसरो की बेटी कहलाये

भारतेंदु संग रास रचाये

कविजन सारे जिसके प्रहरी

क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!

 

बांच जिसे जियरा हरषाये

सोलह मात्रा छंद सुहाये

पुलकित नयना बरसे बदरी

क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!

 

चैन चुराये दिल को भाये 

चिर-आनंदित जो कर जाये

मन की कहती फिर भी मुकरी!

क्या वह सजनी? नहिं कह-मुकरी!

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 2637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 19, 2012 at 7:32pm

आदरणीय भाई जी,

अपने अंदाज़ में कह-मुकरियों की लाजवाब पेशकश की आपने| मुकरी के प्रणेता और उसे पुनः प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले दोनों महानुभावों को नमन है| सादर,

Comment by Arun Sri on July 19, 2012 at 1:39pm

सौरभ सर , हालाँकि आपके आलेख में स्पष्ट लिखा है कि //प्रथम  तीन वर्णन-पंक्तियों के माध्यम से साजन या प्रियतम या पति के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हैं//
यहाँ थोड़ी भिन्नता देखी तो पूछ लिया ! :-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 1:13pm

इस प्रश्न से सम्बन्धित इसी मंच पर कई चर्चा-परिचर्चाएँ हो चुकी हैं. 

’का सखि साजन’ के अलावे शायद ही अन्य प्रश्न सामने आ पाया है.  ’साजन’ को वाराणसी शैली में ’सज्जन’ जरूर किया गया है, ऐसे भी उदाहरण हैं. लेकिन अन्य ’बूझ’ का उदाहरण नहीं आ पाया है. 

अन्य प्रश्न, जैसा कि यहाँ प्रयुक्त हुए हैं, वे प्रासंगिक भर हैं.  अन्यथा भर.

Comment by Arun Sri on July 19, 2012 at 12:56pm

बहुत बढ़िया कह मुकरियाँ ! लेकिन कह मुकरी को "का सखी साजन" के प्रारूप के अलावा भी किसी भी रूप में लिखा जा सकता है  या इसे नई शुरुआत समझा जाए ?

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:11pm

बहुत खूब आदरणीय सौरभ जी !

हँसती ’दोअर्थी’  कह-कह कर
करे इशारे  तिर्यक अक्सर
बढ़े न खुलके, चलती सँकरी
का वो तिरिया ? ना ’कह-मुकरी’ ...... --सौरभ पाण्डेय


वाह वाह वाह  .क्या बात है ..... हार्दिक बधाई मित्रवर .......:-))))

दो अर्थी है जिसकी वाणी

मुकरे निज से हँस कल्याणी

जीवन रस की छलके गगरी

जीवन साथी? नहिं कह-मुकरी!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:06pm

आदरेया सीमा जी, आप जैसी विदुषी की सराहना पाकर यह सृजन धन्य हो उठा है ! अतएव आपके प्रति  हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ ! सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:04pm

धन्यवाद भ्राता  अरुण जी !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:03pm

//अधरों पर मुस्कान जगाए 

गुप-चुप दिल के भेद बताए

है वो एक रहस्मय खबरी!

क्या सखी सजना? न न कह-मुकरी!//

सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरेया डॉ० प्राची जी, प्रतिक्रिया में अति सुंदर कह मुकरी रची है आपने......साधुवाद ....

इससे प्रेरित होकर एक और कह-मुकरी उपजी है ....  

हम पर उसका पूरा हक रे

नैनों से कह उससे मुकरे

चलती तिरछी राहें सँकरी  

क्या वह सजनी? नहिं कह मुकरी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 11:18am

सम्यक कहा आदरणीय अम्बरीषभाईजी.  बहुत खूब !

आपही के स्वर में हम सुर लगायें - 

हँसती ’दोअर्थी’  कह-कह कर
करे इशारे  तिर्यक अक्सर
बढ़े न खुलके, चलती सँकरी
का वो तिरिया ? ना ’कह-मुकरी’ .. ....  हा हा हा हा .........



कह-मुकरी पर एक आलेख भी चस्पां है इन्हीं पन्नो पर.
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:153703

सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 11:00am

वाह भ्राताश्री बेहद खुबसूरत कह-मुकरियां, बहुत - बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service