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उनको ही तकते रह गए

उठता यूँ हिजाब देख के
उनको ही तकते रह गए

काला तिल रुखसार पर
लेता जाँ है जाने जिगर
दिल पे है कैसा ये असर
न रही दुनिया की खबर 

रंगत औ शबाब देख के
उनको ही तकते रह गए

लगती है जैसे गुल बदन
उठती है मीठी सी चुभन
धरती है या है वो गगन
सीने में चाहत की अगन

होंठों में गुलाब देख के
उनको की तकते रह गए

गहरा वो कोई सागर
या कल कल सा कोई निर्झर
भिगोये नैन की गागर
मान बैठा उसे दिलबर

आँखों में शराब देख के
उनको ही तकते रह गए

वो खिलता सा कोई कँवल
बात उसकी लगे ग़ज़ल
हँसे तो दिल में हो हलचल
ये दिल जाए मचल मचल

बातों का हिसाब देख के
उनको ही तकते रह गए

संदीप पटेल "दीप"  

Views: 366

Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:49pm

आदरणीया रेखा जी आपको रचना पसंद आई और आपने इसको सराहा इसके लिए आपका बहुत बहुत धनयवाद और सादर आभार

Comment by Rekha Joshi on July 12, 2012 at 8:46pm

संदीप जी ,बहुत ही प्यारी सी रचना ,हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 7:54pm

आदरणीया डॉ साहिबा आपने गीत पढ़ा और मेरा उत्साहवर्धन किया इसके लिए मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 7:53pm

आदरणीय अलबेला सर जी
मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका ह्रदय की गहराई से धन्यवाद और सादर आभार
अपना स्नेह मुझ पर बनाये रहिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 6:32pm

बहुत सुन्दर गीत. हार्दिक बधाई  

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 3:03pm

बड़ा रंगतदार गीत रचा है प्रभु !
आनंद आया

लगती है जैसे गुल बदन
उठती है मीठी सी चुभन
धरती है या है वो गगन
सीने में चाहत की अगन

होंठों में गुलाब देख के
उनको की तकते रह गए

वाह संदीप पटेल जी.........बहुत खूब !
बधाई !

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