For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओढ़ शून्य का झीना आँचल
बढ़ चलें अनायास ही...
शून्य में समेट लेने
प्रकृति का अनंत विस्तार
या फिर,
रचने शून्य से ही
सृजन के अनंत तार...  
जिसमे,
वक़्त का दरिया
हो लय,
रहे मात्र क्षण...
मीलों लम्बा फासला,  
मुकाम, 
डग भर,
तत्क्षण...
नील सागर निहित  
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए
चेतना के कदम....
 
डॉ. प्राची

Views: 629

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2012 at 12:56am

नीलवर्ण ब्रह्मांड के विस्तार का ही द्योतक है और बिम्बवत् उसे ऐसा ही कहते भी हैं. और कृष्ण वर्ण समयाभाव का या समयशून्यता का प्रतीक है.  नीलवर्ण और कृष्ण वर्ण के प्रतीक हमारे वाङ्गमय में स्पष्टतः उद्येश्यपरक हैं और दोनों वर्ण जिनसे जोड़े गये हैं वह चैतन्यस्वरूप का चरम है. सही या न-सही के मध्य चयन हेतु अविश्वसनीय विवेक है. उसके मार्ग पर दिशा स्वयं विवेक इंगित करता है. यही उस चेतना का के लिये पथ भी है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 6, 2012 at 12:44am
इस रचना पर आपकी  शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार आ. सौरभ पाण्डेय जी.
अनंत का विस्तार अनंत है, आयाम भी अनंत हैं...और पाने के लिए रहस्मयी गूढ़ ज्ञान  भी अनन्त है..
काश हर अनुभूति को शब्दों में ढाल सकूँ, काश मुझे  शब्दों की वो कारीगरी भी मिल जाए, कि खूबसूरत और दिव्य सृष्टि और उसका एक एक रहस्य काव्य रूप पा सके...
इस काव्य में TIMELESSNESS  और SPACELESSNESS  को लिखना चाहती थी, नील सागर क्या है..... कैसा है, ये भी विस्तार नहीं दे पाई.. आगे प्रयत्न करूंगी.
पुनः आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2012 at 12:32am

डा. प्राची,  चेतना अन्तःकरण के ग्राही सदृश चित्त में सकारात्मक वृत्तियों का कुल प्रयास है जिसे धार कर मनुष्य दिव्य पथ की ओर अग्रसरित होता है.  आपका मनन उस चेतना प्रक्रिया के प्रयास का बखान कर रहा है.  प्रयासरत रहें. कुछ और आयाम स्पष्ट होंगे.

सादर शुभकामनाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2012 at 12:03pm

आ. लक्ष्मण लाडिवाला जी, इन शब्दों के एहसास में क्षण-भर ठहरने के लिए आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2012 at 12:01pm
आ. राजेश कुमारी जी, रेखा जोशी जी, अरुण शर्मा जी आपने इस रचना को देख, अपना कीमती वक़्त दिया, आपका ह्रदय से आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2012 at 11:58am
आदरणीय योगी सारस्वत जी,
ये शब्द आपको सुन्दर लगे, इस हेतु आपका आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2012 at 11:57am
आ. आशीष यादव जी, आपका आभार आपने इस रचना को सराहा.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2012 at 11:55am
आ. सुरेन्द्र शुक्ला जी, आपको यह रचना पसंद आयी आपका हार्दिक आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2012 at 11:53am
आ. उमाशंकर मिश्रा जी, इस रचना की शून्य गहनता का आभास आपको सुन्दर लगा, इस हेतु आपका ह्रदय से आभार. 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2012 at 10:43am

तत्क्षण...

नील सागर निहित  
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए
चेतना के कदम....
 सुन्दर संदेशपरक शब्द ,सुन्दर भावपूर्ण रचना प्राची जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service