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उगता सूरज -धुंध में

उगता सूरज -धुंध में
-----------------
कर्म फल -गीता
क्रिया -प्रतिक्रिया
न्यूटन के नियम
आर्किमिडीज के सिद्धांत
पढ़ते-डूबते-उतराते
हवा में कलाबाजियां खाते
नैनो टेक्नोलोजी में
खोजता था -नौ ग्रह से आगे
नए ग्रह की खोज में जहां
हम अपने वर्चस्व को
अपने मूल को -बीज को
सांस्कृतिक धरोहर को
किसी कोष में रख
बचा लेंगे सब -क्योंकि
यहाँ तो उथल -पुथल है
उहापोह है ...
सब कुछ बदल डालने की
होड़ है -कुरीतियाँ कह
अपनी प्यारी संस्कृति और नीतियों की
चीथड़े कर डालने की जोड़ -तोड़ है
बंधन खत्म कर
उच्छ्रिंख्ल होने की
लालसा बढ़ी है पश्चिम को देख
पूरब भूल गया -उगता सूरज
धुंध में खोता जा रहा है
कौन सा नियम है ?
क्या परिवर्तन है ?
सब कुछ तो बंधा है गोल-गोल है
अणु -परमाणु -तत्व
हवा -पानी -बूँदें
सूरज चंदा तारे
अपनी परिधि अपनी सीमा
जब टूटती है -हाहाकार
सब बेकार !
आँखों से अश्रु छलक पड़े
अब घर में वो अकेला बचा था
सोच-व्याकुलता-अकुलाहट
माँ-बाप भगवान को प्यारे
भाई-बहन दुनिया से न्यारे
चिड़ियों से स्वतंत्र हो
उड़ चले थे ...............
फिर उसे रोटियाँ
भूख-बेरोजगारी
मुर्दे और गिद्ध
सपने में दिखने लगते
और सपने चकनाचूर
भूख-परिवर्तन -प्रेम
इज्जत -आबरू
धर्म -कानून-अंध विश्वास
सब जंजीरों में जकड़े
उसे खाए जा रहे थे .....
-------------------------------
३.०२-३.४५ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी १३.०२.२०१२

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 2, 2012 at 10:32pm

आदरणीय डॉ बाली जी अभी अभी जब मैंने अपना मेल खोला तो ये आप की लाख लाख बधाइयाँ देख कर मन हर्ष से झूम गया ..आप सब का ये प्रेम और 'उगता सूरज धुंध ' को मिली कामयाबी के लिए आप सभी हमारे प्रिय पाठकों , मित्रगन , पथ प्रदर्शक गन को भ्रमर की तरफ से आभार और ढेर सारा स्नेह ...उम्मीद रहेगी की ये हम सब का कारवाँ ..हमारे प्रिय बागी जी , योगराज जी , सौरभ जी तथा सभी विद्वद जन के सहयोग अथक परिश्रम से निखरता ऊँचाइयाँ चढ़ता रहेगा ..प्रायोजक गोल्डेन बैंड इंटरटेनमेंट (G-Band ) H.O.F-315, Mahipal Pur-Ext. New Delhi.को प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
जय श्री राधे
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 2, 2012 at 8:22pm

सुरेन्द्र भाई नमस्कार ! आप की रचना "उगता सूरज -धुंध में" को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना (Best Creation of the Month) चुने जाने पर आपको लाख  लाख बधाइयाँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2012 at 7:23pm

सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी बहुत उत्कृष्ट रचना है बहुत बहुत बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 1, 2012 at 10:53pm

आदरणीया रेखा जी हमारी युवा पीढ़ी जिसके कन्धों पर देश की जिम्मेदारी है यदि ऐसे ही उलझा रहा तो क्या करेगा सरकार को हर संभव सहायता दे इन्हें बढ़ाना चाहिए आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ...जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on June 29, 2012 at 12:38pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी ,सादर 

आँखों से अश्रु छलक पड़े
अब घर में वो अकेला बचा था
सोच-व्याकुलता-अकुलाहट
माँ-बाप भगवान को प्यारे
भाई-बहन दुनिया से न्यारे
चिड़ियों से स्वतंत्र हो
उड़ चले थे ...............,बढ़िया कविता ,बधाई 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 29, 2012 at 12:58am
आदरणीय अलबेला जी इस रचना पर आप से समर्थन पा बड़ी ख़ुशी हुई आइये ये प्रयास करें की उगता सूरज बुलंदियों तक जाए धुंध में न खोने पाए  ..जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
भ्रमर का दर्द और दर्पण  
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 29, 2012 at 12:57am
आदरणीय कुशवाहा जी ... आज की जिंदगी की उहापोह भरे पल दर्शाते ये रचना आप को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी आभार  ..जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
भ्रमर का दर्द और दर्पण  
Comment by Albela Khatri on June 16, 2012 at 5:57pm

वाह वाह सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर जी,
बहुत खूब कविता..........


बंधन खत्म कर
उच्छ्रिंख्ल होने की
लालसा बढ़ी है पश्चिम को देख
पूरब भूल गया -उगता सूरज
धुंध में खोता जा रहा है
कौन सा नियम है ?
क्या परिवर्तन है ?
सब कुछ तो बंधा है गोल-गोल है
अणु -परमाणु -तत्व
हवा -पानी -बूँदें
सूरज चंदा तारे
अपनी परिधि अपनी सीमा
जब टूटती है -हाहाकार
सब बेकार !
_______यहाँ तो आपने कमाल ही कर दिया .....बधाई !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 5:20pm

खोजता था -नौ ग्रह से आगे
नए ग्रह की खोज में जहां
हम अपने वर्चस्व को
अपने मूल को -बीज को
सांस्कृतिक धरोहर को
किसी कोष में रख
बचा लेंगे सब -क्योंकि
यहाँ तो उथल -पुथल है
उहापोह है ...
सब कुछ बदल डालने की
होड़ है -कुरीतियाँ कह
अपनी प्यारी संस्कृति और नीतियों की
चीथड़े कर डालने की जोड़ -तोड़ है

आदरणीय भ्रमर जी, सादर अभिवादन 

उत्क्रष्ट रचना. बधाई.

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