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धुंए का शौक लग गया तो ज़िन्दगी गई

आज 31 मई विश्व  तम्बाकू  विरोधी दिवस पर एक  विशेष रचना


सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई
धुंए का शौक लग  गया तो  ज़िन्दगी गई

छुप छुप के पीना छोड़, खुल्लेआम पी रहे
माँ की  लिहाज़,  बाप से शरमिन्दगी गई

गुटखा चबाने वाले की पिचकारी गज़ब थी
धोयी बहुत दीवार, पर न गन्दगी गई

ज़र्दा चबा चबा के मुँह को सन्त कर दिया
अब स्वाद और मसालों की पसन्दगी गई

अलबेलाजी दिन रात खोहों खोहों खांसते
पूजा, हवन,  नमाज़ गई,  बन्दगी गई

जय हिन्द !

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2012 at 6:03pm

नहले  दहले तो सब अलबेला भाई जी के ही हैं, मेरी तुकबन्दियाँ तो दुग्गी-तिग्गी ही हैं राजेश कुमारी जी

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 5:57pm

दहला तो आपने मारा था राजेश जी, प्रभाकर जी ने तो इक्का ही  टिका दिया ....अब मेरे पास तो  जोकर भी नहीं...हा हा हा

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 5:54pm

देख लो योगराज प्रभाकर जी,  आपने "वो" स्वीकार नहीं की  तो मैंने  "ये" लिख दी....हम भी बालक ज़रा जिद्दी टाइप के हैं .....मानेंगे नहीं  घुच्ची में अन्टारे डाले बिना......{  अन्टारे यानी   कांच की  वे गोलियां  जिससे  बचपन में आप भी खेले होंगे }

आपकी यह बात दिल में उतर गई कि हास्य अगर सन्देश दे, तभी उसकी सार्थकता है . माशाल्लाह अपे शे'र तो गज़ब ढा गये......बधाई भाई जी....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2012 at 5:51pm

देखा पकड़ लिया ना!!वैसे भी आप फिल्म और टीवी कलाकार जिस चीज का ऐड देते हैं वो खुद कभी इस्तमाल नहीं करते |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2012 at 5:40pm

वाह योगराज जी इसे कहते हैं नहले पे देहला 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2012 at 5:37pm

I share this link on facebook.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2012 at 5:34pm

आद. अलबेला जी, बहुत बढ़िया कहा है. असली मिजाह वो जो साथ में सन्देश भी देता हो, वो ही बात आपकी रचना से नुमाया हो रही है, मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकारें, आपकी इस ग़ज़ल के नाम मेरी दो तुकबन्दियाँ हाज़िर हैं:

कमरे को बना डाला उसने थूकदान सा
कुछ इस क़दर ऊंचाई पर बेहूदगी गई

ताक़त की गोलियां भी, करेंगी ना फायदा
सिगरेट जो लग गई, तेरी मर्दानगी गई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2012 at 5:34pm

लाजबाब सम सामायिक रचना आज के दिवस के लिए ही नहीं हमेशा के लिए सच बताइये खत्री जी आप सिगरेट ???

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 5:25pm

शुक्रिया  संदीप कुमार पटेल साहेब,  बहुत बहुत  शुक्रिया
आज ३१ मई थी तो सोचा....आज कुछ तूफानी करते हैं.....हा हा हा
सराहना के लिए आभारी हूँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 5:21pm

आज के परिवेश में लिखी गयी बेहतरीन ग़ज़ल आपकी क्या बात है साहब बहुत खूब

कृपया ध्यान दे...

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