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यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,

अब कहाँ किसी में रही सोचने कि फुरसत ,
देखी गई हैं अक्सर इन्सान की ये फितरत ,
जाने कहाँ चली गई इंसानों से इंसानियत ,
यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,

अबलाओ पे अत्याचार चोर बन गए पहरेदार ,
होने लगी है अक्सर अपनों में ही तकरार ,
देखो यारो बदली कैसी इंसानियत कि सूरत ,
अंधी हो गई अपनी इंसाफ कि ये मूरत ,
यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,

आप रहो अब होशियार जानने को तैयार ,
अजब लगेगा आपको लोगो का व्यवहार ,
क्या न करवाए सब कुछ पाने कि चाहत ,
रोती हैं इस जहाँ में अक्सर मासूमियत ,
यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 29, 2010 at 7:45pm
अबलाओ पे अत्याचार चोर बन गए पहरेदार ,
होने लगी है अक्सर अपनों में ही तकरार ,
बहुत खूब गुरु जी , सही कहा आपने अब कहाँ किसी में रही सोचने कि फुरसत,अच्छी रचना |
Comment by Ratnesh Raman Pathak on September 29, 2010 at 7:10pm
गुरु जी हम फिर से कह रहल बनी की राउर कविता के मिठास कुछ अलगे होला.कोई कुछ भी कहे लेकिन रउरा कलम में जादू बा .राउर इ कविता जहा एक तरफ वर्तमान समाज के मूह पर जोरदार तमाचा दे रहल बा वही दूसरी तरफ एह मंच के सदस्यन के मन मोह रहल बा .राउर इ मन के भाव ,दुनिया के सच,समाज के अवगुण इत्यादि कविता के रूप में प्रस्तुत करे के तरीका बड़ा निराला बा भैया .धन्यवाद्
राउर छोट भाई----रत्नेश रमण पाठक
Comment by Rash Bihari Ravi on September 29, 2010 at 12:49pm
dhanyabad aap sab ko
Comment by Pooja Singh on September 29, 2010 at 11:48am
गुरु जी
,प्रणाम बहुत बढिया लिखा आपने की {अबलाओ पे अत्याचार चोर बन गए पहरेदार ,
होने लगी है अक्सर अपनों में ही तकरार ,
देखो यारो बदली कैसी इंसानियत कि सूरत ,
अंधी हो गई अपनी इंसाफ कि ये मूरत ,
यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,}हमारे आज के समाज की यही असलियत है | आपको बहुत बधाई बढिया रचना के लिए |
Comment by आशीष यादव on September 28, 2010 at 6:22am
Sach yahi h asaliyat. Bahut sundar git. Wah
Comment by Subodh kumar on September 27, 2010 at 6:52am
sunder..bahut khub.

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