For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद तुम्हारी आते ही मन व्याकुल हो जाता है,
छूट गया वो साथ जो कभी नहीं फिर आता है.
 
कितना था आनंद कितना था फिर प्यार वहां,
कितने थे कोमल सपने कितने थे अरमान वहां.
बिजली सी चंचलता थे तूफानो सा उन्माद वहां,
रूठ गया किसी बात पे मीत बहुत याद आता है.
                          याद तुम्हारी आते ही मन .......................
छोटे छोटे गुड्डे गुडिया, छोटी अपनी दुनिया थी,
छोटे छोटे स्वप्न गढ़े थे, छोटी उनकी कड़ियाँ थी,
छोटे छोटे खेल खिलौने, छोटी अपनी बगिया थी,
उड़नपरियों वाला किस्सा अब भी मन को भाता है.
                            याद तुम्हारी आते ही मन .......................
मेरे मन के इक कोने में सदा तुम्हारा वास रहा,
भूल  सका ना कभी तुम्हे सदा तुम्हारा भास रहा,
दूर गया मै निकल फिरभी ह्रदय तुम्हारे पास रहा,
फूलों पे तितली का आना अब भी मुझको भाता है.
                              याद तुम्हारी आते ही मन .......................
तेरे जाते ही यौवन आया आयी जिम्मेदारी भी,
रोक सका ना तेरा जाना उफ़ क्या मजबूरी थी,
धरती अम्बर में जीतनी उतनी ही अब दूरी थी,
जीवन में बचपन ही क्यूँ सबसे पहले आता है,
                                याद तुम्हारी आते ही मन .......................

Views: 737

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 18, 2012 at 6:19pm

रेखा जी
          सादर, सही कहा आपने बचपन के दिन भी क्या दिन थे.जब भी याद आते हैं गुदगुदाते रहते हैं. धन्यवाद.

Comment by Rekha Joshi on May 17, 2012 at 10:49pm

अशोक जी ,बचपन के दिन भी क्या दिन थे ,अच्छी प्रस्तुति पर बधाई |


Comment by Ashok Kumar Raktale on May 9, 2012 at 9:30pm

आदरणीय जवाहर जी भाई एवं राजेश कुमारी जी सादर, मेरी रचना को सराहने एवं उसके साथ स्वयं को जोड़ने के लिए धन्यवाद. आपकी प्रतिक्रया मेरे लिए प्रोत्साहन स्वरुप रहेगी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 9, 2012 at 5:09pm

मेरे मन के इक कोने में सदा तुम्हारा वास रहा,

भूल  सका ना कभी तुम्हे सदा तुम्हारा भास रहा,
दूर गया मै निकल फिरभी ह्रदय तुम्हारे पास रहा,
फूलों पे तितली का आना अब भी मुझको भाता है.
अशोक कुमार जी बहुत सुन्दर लिखा है  बचपन के ऊपर, सच में हम आज भी अपने बचपन को कितना याद करते हैं और बचपन का कोई साथी ख़ास हो तो फिर क्या ही कहने यह आपकी कविता बाखूबी बयान कर रही है बधाई आपको 
    
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 9, 2012 at 5:26am
मेरे मन के इक कोने में सदा तुम्हारा वास रहा,
भूल सका ना कभी तुम्हे सदा तुम्हारा भास रहा,
दूर गया मै निकल फिरभी ह्रदय तुम्हारे पास रहा,
फूलों पे तितली का आना अब भी मुझको भाता है.
याद तुम्हारी आते ही मन .......................
आदरणीय अशोक भाई जी, ..बचपन की यादे ताजा कर दी आपकी कविता ने .

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई स्वीकार करें!
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2012 at 10:09pm

महिमा जी सादर,
                           हर मन में बसा बालपन एकसा ही तो है.जीवन का सबसे अच्छा वक्त.मगर अब सिर्फ यादें ही तो बाकी है. रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद.

Comment by MAHIMA SHREE on May 8, 2012 at 10:01pm
छोटे छोटे गुड्डे गुडिया, छोटी अपनी दुनिया थी,
छोटे छोटे स्वप्न गढ़े थे, छोटी उनकी कड़ियाँ थी,
छोटे छोटे खेल खिलौने, छोटी अपनी बगिया थी,
उड़नपरियों वाला किस्सा अब भी मन को भाता है.---

आपने तो हमारी मन की बात कह दी

आदरणीय अशोक सर ..बचपन की यादे ताजा कर दी आपकी कविता ने .

बहुत ही sunder prastuti बधाई स्वीकार करें

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2012 at 9:56pm

 सरिता जी सादर नमस्कार,
                                   आपने रचना के मार्मिक पहलू को समझा आपका शुक्रिया. धन्यवाद.              

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2012 at 9:53pm

आदरणीय प्रदीप जी
               सादर, सब आपका ही आशीर्वाद है. आपने मेरे मन की उलझन को समझा आपका आभार धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2012 at 9:50pm

कुमार गौरव जी नमस्कार,
                                    आपको रचना पसंद आई. बहुत बहुत धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service