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दो शब्द जीवन साथी से

सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ आभार ?

 

क्या लिखूं ?

जिसमें समा जाए -

-नहाई देह की खुशबू

सुबह मेरी जो महकाती रही है !

-और होंठो की मधुर मुस्कान

जो बिखरी मेरे होंठो पे ऐसे खिलखिलाकर ,
भर गई मेरे ह्रदय में   

उष्णता अनमोल !

मरुथल में खिले जैसे

कुछ हँसी के फूल !

योग्य संभवतः नही पर

धन्य हूँ पाकर

दिए तुमने हैं जो उपहार !

सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ आभार ?

 

ढूंढ कर लाऊं कहाँ से ?

शब्द ऐसे -

-जो तुम्हारे रात भर जागे नयन को

नींद का आराम दे दे !

-जो उनींदी उलझनों को

प्रात सी मुस्कान दे दे

क्या लिखूं मैं ?
जो तुम्हारे थकन को परिणाम दे दे !

और शक्ति दे कि तुम फिर

अन-थके दिन भर संभालो

आसमां का भार !
सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ आभार ?

 

 

 

.......................................... अरुन श्री !

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2012 at 11:21pm

भाई अरुणजी, इस भावप्रवण कविता के लिये बधाई.  वैसे कुछ और कसावट इस रचना में और खूबसूरती का वाइस बनती. 

’होठ (या होठों?) की मुस्कान’ का प्रयोग कुछ-कुछ गर्म आग   या ठंढी बर्फ़   की तरह लगा.

बहरहाल, आपके शब्द कुनमुनाते हुए हैं. सो, अच्छे लगते हैं.

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